यह है कारण
एसके अस्पताल में एक वर्ष पीपीपी मोड पर सिटी स्कैन की सुविधा शुरू की गई थी। निजी सेंटरों की तुलना में सिटी स्कैन की दर कम होने के बावजूद संचालकों की ओर से सिटी स्कैन की रिपोर्ट के लिए 24 घंटे रेडियोग्राफर की सुविधा नहीं की गई है। रही सही कसर ट्रोमा यूनिट में फिजिशियन की बजाए अन्य विशेषज्ञों की ड्यूटी होने पर हो जाती है। ऐसे में सिटी स्कैन की फिल्म तो मरीज को थमा दी जाती है लेकिन उसकी चोट का सटीक पता रेडियोग्राफर ही लगा सकता है।
Must read: VIDEO: स्वतंत्रता दिवस पर आप भी मिलिए ऐसे बुजुर्ग से जो सौ साल की उम्र में भी दुश्मनों को धूल चटाने का रखते हैं हुनर.. यह है हकीकत सिटी स्कैन होने पर सीकर सेंटर से रिपोर्ट को इंटरनेट पर अपलोड किया जाता है। इस रिपोर्ट को अपलोड कर दी जाती है। इसके बाद रेडियोग्राफर को कॉल की जाती है। जो
जयपुर में बैठा रिपोर्ट को डाउनलोड करता है। इस पूरी प्रक्रिया में दिन में एक से दो घंटे तक लग जाते हैं। सूत्रों के अनुसार कई बार रात के समय रेडियोग्राफर रिपोर्ट को अगले दिन तैयार किया जाता है। ऐसे में परिजन मरीज को
जयपुर ले जाते हैं कई बार समय पर उपचार नहीं मिलने से मरीज की मौत तक हो जाती है।
इंटरनेट पर निर्भर… सीकर में सिटी स्कैन की रिपोर्ट इंटरनेट पर अपलोड कर दी जाती है। जिसके आधार पर रिपोर्ट
जयपुर से की जाती है। रिपोर्टिंग का स्तर अंतर्राष्ट्रीय है। यहां से रिपोर्ट में देरी नहीं होती है। सीकर में बैठ कर इसकी रिपोर्ट तैयार नहीं की जा सकती है।
-डा. विनोद गुप्ता, संचालक पीपीपी मोड Must read: आस्था पर आतंक का हमला, जागरण में आए श्रद्धालुओं पर बरसाईं ताबड़तोड़ गोलियां, हर तरफ तबाही का मंजर… केस- एक एसके अस्पताल में शनिवार रात को सड़क दुर्घटना में घायल मरीज का सिटी स्कै न तो हो गया लेकिन रिपोर्ट नहीं बनाई गई। इससे ट्रोमा यूनिट में चिकित्सकों को चोट की स्थिति का पता नहीं चल पाया। मजबूरन मरीज को परिजन
जयपुर ले गए।