हुआ यूं कि सोशल मीडिया पर एक दुर्घटना का फोटो वायरल हुआ। इसमें राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के पास सूरवाड़ में गंभीर एक्सीडेंट बताकर मदद मांगी जा रही थी। श्योपुर के लहचौड़ा के दीनदयाल शर्मा ने फोटो देखा तो पहचान बेटे सुरेंद्र के रूप में कर ली। वे जयपुर पहुंचे तो युवक की मौत हो गई।
पिता 29 मई को सुरेंद्र मानकर शव घर ले आए और अंतिम संस्कार कर दिया। वीडियो कॉल किया परिजन रविवार को होने वाली तेरहवी की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच शनिवार को नोएडा से सुरेंद्र ने भाई देवेंद्र को फोन किया। पहले तो देवेंद्र को भरोसा नहीं हुआ, वीडियो कॉल किया तो परिजन दंग रह गए। फिर खुद को संभाला और ईश्वर को धन्यवाद दिया। सभी की आंखें खुशी से भर आईं।
यहां पढ़ें पूरा मामला
बता दें कि
मध्य प्रदेश के श्योपुर के लहचौड़ा निवासी सुरेंद्र शर्मा बाहर जयपुर मजदूरी करता था। पिछले दिनों सवाई माधोपुर के सरवाड़ गांव के थाने से फोन आया कि सड़क हादसे में एक युवक की मौत हो गई। घटना की जानकारी मिलने के बाद स्वजन शव की शिनाख्त करने के लिए एसएमएस अस्पताल पीएम हाउस पहुंचे, परिजन ने मृतक की पहचान सुरेंद्र के रूप में की। जिसके बाद पुलिस ने पंचनामा बनाकर शव उनको सौंप दिया।
घर लाकर किया अंतिम संस्कार
परिजन शव को गांव लेकर आए और उसका अंतिम संस्कार कर दिया। घर में पिछले 12 दिन से गमगीन माहौल था। बैठने आने के लिए रिश्तेदरों का का आना-जाना लगा रहा था।
शनिवार 8 जून को अचानक आया कॉल और फिर लौट आईं खुशियां
शनिवार 8 जून की शाम को अचानक सुरेंद्र शर्मा के नंबर से उसके भाई के मोबाइल पर फोन आया, उसने जब बात की तो बोला मैं सुरेंद्र बोल रहा हूं। घरवालों को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने वीडियो कॉल पर देखा तो वह सुरेंद्र ही था, लेकिन फिर भी घरवालों को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने से सुबह गांव आने के लिए कहा। सुरेंद्र रात की बस से ही जयपुर से गांव के लिए निकल आया और सुबह गांव पहुंच गया। जब घरवालों ने उसे आंखों के सामने जिंदा देखा तो वे हैरान रह गए। सबकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सुरेंद्र की मौत से जिस घर में दुख माहौल बना हुआ था वो पलभर में खुशी में बदल गया। सुरेंद्र के जिंदा होने की खबर मिलते ही उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई।
ब्राह्मण भोज की रस्म निभाई
सुरेंद्र के चाचा धर्मराज शर्मा ने बताया कि जिसका शव हम लेकर आए थे उसकी शक्ल हुबहू सुरेंद्र से मिल रही थी, इसलिए हमें लगा शव सुरेंद्र का ही है। इसलिए उसे बेटा, भाई मानकर अंतिम संस्कार किया। गुजरात के पंडितों द्वारा उसका क्रियाक्रम किया गया। अंतिम संस्कार के बाद सभी रस्में पूरी कीं। 12वें दिन बारहवें की रसोई थी, जिसकी सभी तैयारी कर ली थी। बारहवें में शामिल होने के लिए मेहमान आ गए थे।
इसलिए समझा सुरेंद्र का शव
चाचा धर्मराज का कहना है कि सुरेंद्र काफी दिन से जयपुर में कंपनी में काम करता था, जब उसके एक्सीडेंट की खबर सुनी तो उसके मोबाइल पर फोन लगाया, लेकिन उसका मोबाइल बंद था। शव लेने के लिए जब एसएमएस अस्पताल जयपुर पहुंचे तो जिसका शव रखा था उसकी शक्ल सुरेंद्र मिल रही थी इसलिए शव लेकर आ गए।