ऐसी मान्यता है कि माता रानी की यह अद्भुत प्रतिमा कल्चुरि काल की है जो कि बिरले ही देखने मिलते हैं। यहां माता रानी के विकराल स्वरूप के दर्शन का लाभ मिलता है। यह स्वरूप अपने आप में ही अद्भुत व अलौकिक है। यहां भक्तों की तो आए दिन भीड़ लगी रहती है लेकिन दोनों पक्षों की नवरात्रि में यहां का नजारा ही देखते बनता है। बैठकी से लेकर नौवीं तक भक्तों का सैलाब मां की आराधना व दर्शन लाभ के लिए उमड़ता है। सुबह से लेकर देर रात तक यहां चहल पहल बनी रहती है। पूरा मंदिर परिसर माता रानी के जयकारों से गूंजता रहता है।
माता के दर्शन के लिए यहां के स्थानीय भक्त तो आते ही हैं, माती की महिमा इतनी अपरंपार है, कि मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। माता रानी के दरबार में दिन रात सेवा करने वाले भक्तों व मंदिर के पुजारी यहां के अद्भुत चमत्कारों का बखान करते नहीं थकते हैं।
सांप करते हैं माता की पहरेदारी
ऐसी मान्यता है कि देर रात माता रानी के पट बंद होने के बाद मंदिर के अंदर कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। यहां पहरेदारी के लिए संाप डेरा जमा लेते हैं। यह सर्प सुबह तक गर्भगृह के आस-पास मंडराते रहते हैं। यहां तक कि कई बार ऐसी भी स्थिति निर्मित हुई है कि दोपहर के समय भी पट बंद होने पर इन्हें गर्भग्रह व मंदिर के द्वार पर लिपटे देखा गया है। यह घटना कभी कभार नहीं घटती बल्कि प्रतिदिन यह विषधर पहरेदारी के लिए यहां पहुंच जाते हैं।
यहां के स्थानीय लोगो व मंदिर के पुजारी व सेवकों का ऐसा भी मानना है कि नवरात्रि के समय में माता रानी के दर्शन के लिए वनराज का भी आगमन होता है। हालांकि आज तक किसी ने उन्हें स्पष्ट रूप से मंदिर परिसर के अंदर देखा नहीं हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के पंचमी के दिन उनका आगमन होता है। सुबह जब पुजारी व भक्त माता रानी की आराधना के लिए पहुंचते हैं तो कई बार वन राज के पद चिह्न देखे गए हैं जो कि उनके आगमन की पुष्टि करते हैं।
कल्चुरी काल की हैं प्रतिमा
अंतरा स्थित कंकाली माता मंदिर के गर्भ ग्रह में अठारह भुजी चामुण्डा के अलावा शारदा एवं अष्टभुजी सिंहवाहनी दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित है। अठारह भुजी चामुण्डा स्थानक रूप में हैं सिर पर जटा मुकुट, आंखे फटी हुई, भयोत्पादक खुला मुंह, नसयुक्त तनी हुई ग्रीवा, गले में मुंडमाला, लटके हुए वक्ष, चिपका उदर पीठ, स्पष्ट पसलियां तथा शरीर अस्थियों का ढ़ांचा अर्थाक कंकाल सदृश्य होने से इनका नाम कंकाली पड़ा।
हाथो में चण्ड-मुण्ड नामक दैत्य, अलंकृत प्रभा मण्डल, पैरों के पास योगिनियां अलंकृत हैं। सभी अठारह भुजाओं में परम्परागत आयुध धारण किए हैं। जिसमें से एक हाथ वरद मुद्रा में तथा एक हाथ में कमल पुष्प धारण किए हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में मंदिर की दीवारों में लगी हुई अनेक कल्चुरी कालीन प्रतिमाएं पुरातात्विक दृष्टि से मंदिर को महत्वपूर्ण सिद्ध करती हैं।