मझगवां से आगे बढ़ा तो सड़क किनारे 10-12 ग्रामीणों का समूह एक दुकान पर चर्चा कर रहा था। परिचय देने के बाद मैंने विकास की स्थिति पर चर्चा छेड़ी तो ग्रामीण बोले, बस्ती में चले जाओ, विकास दिख जाएगा। वे मुझे साथ भी ले गए। मझगवां बंधा बस्ती पहुंचा तो बिजली ही नहीं थी। शारदा सेन बोले, 40 से ज्यादा परिवार हैं, लेकिन बिजली नहीं है। बिजली पोल लाए हैं और टीसी कनेक्शन लेकर खुद के खर्च से बिजली तार जोड़ लिया है। गांव में चौपाल लगाए बैठे वृद्ध भोली बैगा और सुखलाल बैगा ने सरकार के कार्यों को लेकर नाराजगी जताई। बोले, न पीएम आवास मिला और न ही पेंशन मिल रही है।
मंदलाल बैगा ने पानी की समस्या गिनाई। बोले, पहले खेती करते थे। अब पानी ही नहीं मिल पाता है। बांध है लेकिन पानी नहीं देते हैं। नहर से नीचे के गांवों को फायदा होता है। मशीन लगाने पर जब्त कर लेते हैं। लालमन बैगा बोले- उद्योग हैं नहीं। मजदूरी भी कम मिलती है। गांव-घर के युवा रोजी-रोटी के लिए हर साल पलायन कर जाते हैं। कुछ दूरी पर साधन का इंतजार करते हुए बहन को ससुराल से लेने आए दीपक कुशवाहा कहते हैं, यहां न ट्रेन रूट है न बस चलती है। आटो के भरोसे 50 से ज्यादा गांव हैं।
सर्वे में नाम नहीं, हम बैगाओं की क्या गलती
यहां से आदिवासी गांव पचड़ी पहुंच गया। पचड़ी व खौहाई में कई आदिवासी बैगा परिवारों के पास छत नहीं है। नागेश बैगा, संजीव बैगा, सुंदरलाल बैगा और सोनीलाल कहते हैं, पीएम आवास के लिए दर्जनों आवेदन कर चुके हैं। अधिकारी कहते हैं, 2011 सर्वे सूची में नाम न होने से आवास नहीं मिल सकता है। खौहाई गांव में भी यही स्थिति थी। आधे गांव में आवास आदिवासी परिवारों को स्वीकृत नहीं हुआ है। इससे आगे चलकर पचड़ी के ददरा टोला में आंगनबाड़ी केन्द्र खुला दिखा तो पहुंच गया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि तीन कुपोषित बच्चे दर्ज हैं। 300 से ज्यादा आबादी है, फिर भी मुख्य आंगनबाड़ी नहीं है। 2 किमी दूर से पानी लाते हैं। आंगनबाड़ी के लिए बिल्डिंग नहीं है, उधार के अतिरिक्त भवन में लगाते हैं। आगे भी यही मुद्दा था। पीने के लिए पानी लाते भैयालाल अगरिया, स्वामी सिंह मिले। पेयजल पर बात करने पर झिरिया (नाला) ले गए, बोले यहां पहाड़ों से रिसकर पानी पहुंचता है, उससे ही गांव वाले प्यास बुझाते हैं। जल जीवन मिशन का काम वर्षों से चल रहा है लेकिन आज तक घरों में पानी नहीं पहुंचा है।
गेहूं में लागत अधिक, कीमत कम
मझगवां से बीहड़ गांव के जंगल से होकर जुगवारी पहुंचा। यहां किसान होरीलाल जैसवाल ने पीड़ा बयान की। गेहूं में बोनी से लेकर कटाई व परिवहन तक लागत 28 रुपए किलो लग रही है। सरकार 21.40 रुपए दे रही है। 30 किमी दूर उपज बेचने जाना पड़ता है। रुकना भी पड़ जाता है। खर्च काटकर सिर्फ 15 रुपए बचता है। किसान खेती करना छोड़ रहे हैं। हर साल किसान एक से दो एकड़ जमीन बेच रहा है। पत्रिका प्रतिनिधि के आने की बात सुनकर कृष्ण कुमार जैसवाल ऋण माफी का प्रमाण पत्र लेकर पहुंच गए। बोले, इसमें सरकार से लेकर प्रबंधक के हस्ताक्षर हैं। प्रमाण पत्र दे दिया था कर्ज माफ है, लेकिन अब भी कर्ज चढ़ा है। रमई कोल की भी यही समस्या थी। कहा, दलालों से बैंकों से कर्ज करा लिया और भैंस निकलवा ली। अब बिना भैंस के कर्जदार हूं।
उद्योग और नागपुर ट्रेन शहर के लिए बड़ा मुद्दा
सिंहपुर से शहर की ओर लौटते वक्त रास्ते में शशिकांत एक चाय की दुकान में मिल गए। यहां कर्नाटक चुनाव पर चर्चा चल रही थी। शशिकांत बोले, कृषि कॉलेज, नागपुर तक सीधी ट्रेन और उद्योगों में स्थानीय युवाओं को नौकरी बड़े मुद्दे हैं। उद्योग बढ़ेगे तो ही यहां से आदिवासियों का पलायन रुकेगा।
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