संदीप कुमार तिवारी प्रदेश में 2 दिसंबर से समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी शुरू हुई, जो हाल ही में खत्म हुई। प्रदेश के चार जिलों को छोड़कर सभी जगह नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से धान का उपार्जन किया गया, जबकि शहडोल संभाग के तीन जिलों शहडोल, उमरिया और अनूपपुर के अलावा बैतलू जिले में इस बार धान खरीदी से लेकर भंडारण तक की जिम्मेदारी भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता समिति (एनसीसीएफ) को सौंपी गई। यह पहला मौका था जब एनसीसीएफ को धान उपार्जन का कार्य मिला। इससे पहले यह संस्था प्रदेश में चना, मूसर और सोयाबीन की खरीदी करती थी। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई यह शुरुआत कई मायनों में अच्छी नहीं कही जा सकती है। अव्वल तो यह किसानों के हितकर नहीं रही। खरीदी से लेकर परिवहन तक उसके लिए मुश्किल हालात रहे। केंद्रों में जगह कम होने पर तीन-तीन रात रतजगा करने पर नंबर लगता। इसके बाद परिवहन का रोड़ा झेला और अब भुगतान के लिए परेशान हंै। संभाग के तीनों जिलों में किसानों का 580 करोड़ रुपए का भुगतान होना शेष है। यह आधे से भी अधिक है। कुल 70 हजार 400 किसानों ने 42 लाख 64 हजार 193 क्विंटल धान का विक्रय किया। इसके विरुद्ध देय राशि करीब 980 करोड़ बनती है और भुगतान 400 करोड़ के आसपास ही हुआ है। जबकि पड़ोसी जिलों रीवा, सतना में 70 फीसदी से अधिक भुगतान हो चुका है। धान उपार्जन केंद्रों में इस बार शुरुआत से ही अव्यवस्था की स्थिति नजर आई। एनसीसीएफ और अन्य विभागों के बीच समन्वय नहीं दिखा। खरीदी शुरू होने के 15 दिन बाद परिवहन के लिए मिलर और ट्रांसपोर्टर्स से अनुबंध किया गया। शहडोल जिले में वह भी नहीं हो सका। यहां परिवहन का दारोमदार सहकारी समितियों पर रहा। यही कारण है कि खरीदी के बाद परिवहन की रफ्तार काफी धीमी रही और भुगतान लटकता गया। अभी यह पायलट प्रोजेक्ट था। सरकार की मंशा आने वाले समय में पूरे प्रदेश में एनसीसीएफ के माध्यम से ही धान उपार्जन कराने की है, लेकिन इसके लिए काफी होमवर्क की जरूरत है। कमियों से सबक लेकर इसी तरह का होमवर्क गेहंू खरीदी में भी किया जाना चाहिए, जिसके लिए पंजीयन की प्रक्रिया इन दिनों चल रही है। फसलों के उत्पादन में अपना खून-पसीना एक करने वाले किसानों की सुविधा अत्यावश्यक है।
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