डाक विभाग ने लगा रखा है विशेष रूप से डाकिया
त्रिनेत्र गणेश के दर पर आने वाले निमंत्रण पत्रों को पहुंचाने के लिए डाक विभाग की ओर से एक पोस्टमैन को विशेष रूप से तैनात किया गया है। डाक विभाग की ओर से नियुक्त डाकिया सप्ताह में एक बार डाक विभाग में त्रिनेत्र गणेश रणथम्भौर के नाम से आईं डाक को रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर प्रबंधन तक पहुंचाता है।
पढ़कर सुनाते हैं पत्र
मंदिर प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश के नाम से आने वाले सभी पत्रों को मंदिर के पुजारी की ओर से पहले त्रिनेत्र गणेश के चरणों में अर्पण किया जाता है। इसके बाद पुजारी पत्र या कार्ड को खोलकर भगवान गणेश को पढकऱ सुनाते हैं। इसके बाद ही त्रिनेत्र गणेश का निमंत्रण पूर्ण माना जाता है।
सिर्फ कोरोना काल में ही रहा टोटा
डाक विभाग व मंदिर प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण वैवाहिक समारोह का आयोजन कम हुआ है। ऐसे में भक्तों ने चिठ्ठियां भी कम भेजी। हालांकि कोरोना के बाद से फिर से पत्रों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। इस वर्ष की बात करें तो अभी तक 25 हजार से अधिक चिट्ठियां गणेश जी के पास आ चुकी हैं।
स्वयंभू प्रतिमा है त्रिनेत्र गणेश
मान्यता है कि भारत में गणेश की सिर्फ चार स्वयंभू प्रतिमाएं है, जो चिंतामन मंदिर उज्जैन, सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, चिंतामन मंदिर सिहोर और त्रिनेत्र गणेश मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अवंतिकापुरी के महाराज हम्मीर ने कराया था और राजा विक्रमादित्य पूर्व में यहां हर बुधवार पैदल यहां पर दर्शन के लिए आते थे।
पौराणिक कहानी भी मंदिर की मान्यता से जुड़ी
मंदिर को लेकर एक पौराणिक कहानी ये भी कि महाराजा हमीरदेव और अलाउद्दीन खिलजी के बीच सन 1299-1301 को रणथंभौर में युद्ध हुआ था। उस समय दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया। ऐसे में महाराजा को सपने में भगवान गणेश ने कहा कि मेरी पूजा करो तो सभी समस्याएं दूर हो जाएगी। इसके ठीक अगले ही दिन किले की दीवार पर त्रिनेत्र गणेश की मूर्ति इंगित हो गई और उसके बाद हमीरदेव ने उसी जगह भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद कई सालों से चला आ रहा युद्ध भी समाप्त हो गया।