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सतना

मां के इस मंदिर से जुड़ा है बहुत बड़ा रहस्य, यहां हर रोज आते हैं वो ‘दो लोग’ जिनकी कभी नहीं होगी मृत्यु!

मां के इस मंदिर से जुड़ा है बहुत बड़ा रहस्य, यहां हर रोज आते हैं वो ‘दो लोग’ जिनकी कभी नहीं होगी मृत्यु!

सतनाMar 23, 2019 / 01:01 pm

suresh mishra

Story of maihar temple and alha udal sharda mata ka mandir kaha hai

Story of maihar temple and alha udal sharda mata ka mandir kaha hai

सतना। मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर शारदा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है। मैहर नगर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी स्थित मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, अपितु इस मंदिर के विविध आयाम भी हैं। इस मंदिर की चढ़ाई के लिए 1063 सीढिय़ों का सफर तय करना पड़ता है। अब शासन द्वारा रोप-वे की भी व्यवस्था बना दी गई है।
इस मंदिर में दर्शन के लिए हर वर्ष करोडों की भारी भीड़ जमा होती है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, हनुमान मंदिर, देवी काली मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री गौरी शंकर मंदिर, शेष नाग मंदिर, फूलमति माता का मंदिर, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
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ये है पूरी कहानी
स्थानीय परंपरा के अनुसार लोग माता के दर्शन के साथ-साथ दो महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल, जिन्होंने पृथ्वी राज चौहान के साथ भी युद्ध किया था का भी दर्शन अवश्य करते हैं। यदि कोई व्यक्ति रात के समय यहां रूकने की चेष्टा करता है तो वह अगली सुबह नहीं देख पाता। मौत के आगोश को प्राप्त हो जाता है। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।
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शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध है मंदिर
आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
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रात्रि 2 से 5 बजे के बीच बंद रहता है मंदिर
मैहर माता का मंदिर सिर्फ रात्रि 2 से 5 बजे के बीच बंद किया जाता है, इसके पीछे एक बड़ा रहस्य छुपा है। ऐसी मान्यता है कि आल्हा और ऊदल आज तक इतने वर्षों के बाद भी माता के पास आते हैं। रात्रि 2 से 5 बजे के बीच आल्हा और ऊदल रोज मंदिर में आकर माता रानी का सबसे पहले दर्शन करते हैं और माता रानी का पूरा श्रृंगार करते हैं। यह बात स्वयं मंदिर के पुजारी देवी प्रसाद ने स्वीकार की है। देवी प्रसाद ने बताया था कि एक बार हमको एहसास हो चुका है। तब से मैं भी मां की भक्ति में लीन रहता हूं।

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