विधायक नारायण त्रिपाठी पृथक विन्ध्य को लेकर जनआंदोलन काफी समय से चला रहे हैं लेकिन इस आंदोलन की धार समय-समय पर राजनीतिक निहितार्थ के इर्द गिर्द भी घूमती नजर आती है। मसलन जब रैगांव उपचुनाव हुए थे तो पृथक विन्ध्य प्रदेश के झंडे-बैनरों ने भाजपा को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया था। इसने मतदाताओं का एक माइंडसेट कांग्रेस के प्रति इस चुनाव में तैयार किया था। अब मिशन 2023 के लिए नारायण ने सधा हुआ तीर चुनावी चौसर पर छोड़ा है, जिसका परिणाम तो बाद में समझ में आएगा।
सतना में नारायण वोट पर करेंगे चोट कहने को नारायण भले ही भाजपा पार्टी से विधायक हों और खुद को भाजपा का ही बताते हैं लेकिन भाजपा के अन्दरखाने में उनकी गिनती भाजपा के बीच नहीं होती। यही वजह है कि भाजपा के कार्यक्रमों में उन्हें बुलाया नहीं जाता है। ऐसी स्थिति में सतना जिले में उनकी पहचान भाजपा के बागी के रूप में होती है। गाहे बगाहे 2023 के चुनाव को लेकर उन्हें भाजपा की जगह अन्य दल से चुनाव लड़ने की चर्चा अक्सर होती है। ऐसे में वे जब विन्ध्य जनता पार्टी की बात करते हैं तो यह माना जाता है कि उनकी पार्टी भाजपा के साथ या पक्ष में तो नजर नहीं आएगी।सतना जिले में नारायण का व्यक्तिगत प्रभाव भी है। ऐसे में अगर वीजेपी से अगर वे मैदान में आते हैं और सभी विधानसभाओं में अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं तो यह तय है कि उसका नुकसान भाजपा को ज्यादा होगा।
रीवा, सीधी और सिंगरौली में माहौल ज्यादा वोट कम नारायण और उनकी वीजेपी की बात रीवा, सीधी और सिंगरौली जिले की विधानसभा सीटों की करें राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि वहां यह कवायद वोट से ज्यादा माहौल बनाने को लेकर चर्चा में रहेगी। लोगों का मानना है कि वोटर टर्न आउट इस पार्टी के प्रति इस क्षेत्र में काफी कम रहेगा लेकिन जो माहौल बनेगा उससे सत्ताधारी दल को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा। यह अलग बात है कि चुनाव के वक्त पार्टी का रवैया क्या रहता है इस पर भी निर्भर करेगा।
बसपा, आप के बाद अब वीजेपी बसपा को पहली जीत का स्वाद विन्ध्य से ही मिला था। मध्यप्रदेश में किसी चुनाव में आप पार्टी को भी जीत विंन्ध्य से ही मिली थी। ऐसे में वीजेपी विन्ध्य से अपना खाता खोलेगी इसकी भी संभावना मानी जा रही है। अब यह खाता किस विधानसभा से और कितनी सीटों का होगा यह समय की गर्त में हैं।
नारायण से सीधी बातः न हम बागी न बगावत का मामला Q अलग पार्टी अवधारणा कब आई?
A सरकार अगर पृथक विन्ध्य को लेकर कुछ सोचती तो हमें दल बनाने का लालच नहीं है। न ही हम बागी हैं न बगावत का मामला है। अगर भाजपा विन्ध्य पुनर्निर्माण की मांग को सहज स्वीकार कर अटल बिहारी जी की परिकल्पना को पूरा कर देती है तो यह विषय ही खड़ा नहीं होता है। लेकिन विन्ध्य के लोग और अन्य दलों के नेता भी पृथक विन्ध्य चाहते हैं लेकिन कतिपय कारणों से सामने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में हमने ही आगे आने का सोचा।
Q अगर भाजपा नहीं मानती तो क्या?
A अगर हमारी पार्टी भाजपा पृथक विन्ध्य की मांग को स्वीकार नहीं करती है तो मैं विन्ध्य के साथ हूं। हम अब ज्यादा इंतजार नहीं करेंगे। पहले कोरोना की वजह से विलंब हुआ। इस बार विन्ध्य जनता पार्टी अपना चुनाव लड़ेगी। हम लोग अपना चुनाव लड़ेंगे।
Q आप भाजपा में रहेंगे या पार्टी छोड़ देंगे
A मैं विन्ध्य में रहूंगा। अगर भाजपा विन्ध्य के बारे में फैसला करती है तो पार्टी में रहूंगा नहीं तो सब कुछ स्पष्ट है।
Qअपनी पार्टी में दूसरे दलों के लोग लाएंगे?
A नये लोग आएंगे। विन्ध्य के लिये जीने वाले लोग आएंगे। जो अपने बाल बच्चों के बेहतर भविष्य के बारे में सोचते हैं वो आएंगे।
Q अभी वीजेपी की क्या स्थिति है
A विन्ध्य जनता पार्टी का रजिस्ट्रेशन हो गया है। 15 अप्रैल तक पंजीयन आ जाएगा। शुरुआत 30 सीटों से करेंगे। फिर इसका विस्तार उन जिलों में भी होगा जो विलय के पहले विन्ध्य का हिस्सा थे। लेकिन पहले अपना घर ठीक करना होगा। 7 जिलों की 30 सीटों पर लड़कर जीतना होगा।
नारायण पर नेताओं के बोल ” किसी भी नई पार्टी का गठन होता है तो उसका थोड़ा-बहुत असर तो होता ही है। अब ये समय बताएगा कि नुकसान किसका ज्यादा होगा। किस विचाराधारा के लोग इनके साथ जुड़ते हैं। यह स्पष्ट होने के बाद स्थितियां और अधिक स्पष्ट होंगी ” अजय सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष
” विंध्य में सरकार ने काम किया है, जनता भाजपा के साथ ही रहेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को काम के आधार पर ही एक तरफा सीटें मिली थी। वही परिणाम फिर से आएगा। नई पार्टी गठन के बाद भी यहां कोई असर नहीं पड़ेगा ” राजेन्द्र शुक्ला, पूर्व मंत्री
” विन्ध्य पार्टी से कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है। क्षेत्रीय दलों की स्थिति देख ही रहे हैं क्या होती जा रही है। ये उनका निजी एजेंडा है। लोगों का कोई मूवमेंट नहीं है। यह अलगाववादी सियासत है ” गणेश सिंह, सांसद सतना
” अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी कि कितना फर्क पड़ेगा। लेकिन कुछ तो फर्क पड़ेगा। अगर फर्क पड़ता है तो उसका नुकसान भाजपा-कांग्रेस दोनों को होगा। आगे चलकर स्थितियां और स्पष्ट होंगी ” राजेन्द्र सिंह, पूर्व विस उपाध्यक्ष
” विंध्य जनता पार्टी का असर क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग देखने को मिल सकता है। इससे भी ज्यादा असर संबंधित प्रत्याशी पर निर्भर करेगा। अगर मजबूत प्रत्याशी आता है तो निश्चिततौर पर सियासी समीकरण पर फर्क पड़ेगा ” विक्रम सिंह, भाजपा विधायक