सतना। फादर्स डे पर शहर सहित प्रदेशभर में जहां सफल व्यक्तियों के जीवन में पिता की भूमिका पर चारों तरफ अनुभव साझा किए जा रहे। वहीं आज एमपी पत्रिका आपको बता रहा है एक ऐसे पर्वतारोही की कहानी जिसके पिता ने खुद कर्च में डूबकर बेटे को शिखर पर पहुंचाया है। एक पिता अपने बेटे की सफलता के लिए खुद की खुशियां न्यौछावर कर पर्वतारोही बना दिया। यहां बात हो रही है युवा पर्वतारोही खजुरी टोला निवासी रत्नेश पांडेय पिता जयचंद पांडेय की। एवरेस्ट फतेह करने वाले रत्नेश को कौन नहीं जानता है। ये वही शख्स हैं जो खुद की जान को जोखिम में डाल कर मध्यप्रदेश के पहले पर्वतारोही बने।
जब रत्नेश से उनकी इस सफालता के लिए पिता की भूमिका के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा पिता ही एेसे व्यक्ति होते हैं जो हमे पहचान देते हैं। मैं जिस फील्ड में हूँ। उस फील्ड में काफी रिस्क है पर पापा ने इस फील्ड में आगे बढऩे के लिए मोरल और इकोनॉमिक दोनों ही तरीके से साथ दिया। बचपन से ही उन्होंने छोटी- छोटी बातों और कहावतों से मुझे अच्छे कार्य के लिए पे्ररित किया। कर्म ही प्रधान है यह सीख उन्हीं से मिली। इस मुकाम को हासिल करने में उनका अहम योगदान है। वे मेरे रोल मॉडल हैं।
पिता की छांव में पूरा परिवार सुख
बता दें कि पिता, केवल एक रिश्ता नहीं है बल्कि संतान की ताकत है। वो सिर्फ ऊंगली पकड़ कर चलना नहीं सिखाते, बल्कि अपना सुख चैन खो कर बच्चों को यथासंभव खुशी दिलाते हैं। वह वे वट वृक्ष हैं जिसके शीतल छांव में पूरा परिवार सुख से रहता है। बचपन से लेकर आत्मनिर्भर तक बनाने की यात्रा में सभी लोगों को अपने पिता का पूरा सहयोग मिलता है। जीवन में पिता की अहमियत कोई उनसे पूछे जिनके सर पर पिता का साया नहीं होता। फादर्स डे पर शहर के युवा पर्वतारोही से पत्रिका टीम ने जीवन में पिता की भूमिका पर बातचीत की तो उन्होंने अपने राय, अनुभव को सुनाया है।
भूकंप भी नहीं डिगा पाया पैर नेपाल में आई भीषण त्रासदी ने एवरेस्ट फतह के अभियान को चाहे भले ही रोक दिया हो पर रत्नेश के हौसले ने हार नहीं मानी थी। रत्नेश पाण्डेय का भूकंप भी पैर नहीं डिगा पाया। सतना के खजुरी टोला निवासी रत्नेश पाण्डेय पिता जयचंद को पिछली मर्तबा नेपाल में आए भीषण भूकंप की बजह से इन्हे आधी चढ़ाई कर के ही वापस लौटना पड़ा था। लेकिन एक वर्ष बाद सतना का लाल एवरेस्ट फतह कर ही माना। माउंट एवेरेस्ट की चढ़ाई को पूरा कर भारत का झंडा लहरा दिया।
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गांव रत्नेश सतना के रहने वाले हैं, इनका परिवार मूल रूप से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र मझगवां विकासखंड से संबंध रखता है। पिता खेती-किसानी करते हैं, लेकिन कुछ साल से सतना में रहने लगे। यहीं से रत्नेश ने सफलता की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया। रत्नेश को ट्रेकिंग का शौक था, शुरूआती दौर में देश के महत्वपूर्ण पहाड़ों पर सफतला पूर्वक ट्रेकिंग किया। उसके उन्होंने निर्णय लिया कि एवरेस्ट की चढ़ाई करनी है। दूसरी कोशिश में सफल रहे।