90 के दशक तक के अभिलेख हो रहे थे डिजिटल मध्यप्रदेश के सभी जिलों में राजस्व अभिलेखों जैसे खसरा खतौनी आदि के डिजिटाइजेशन का काम किया जा रहा था। सभी पुराने दस्तावेजों की कम्प्यूटर से लिंक अत्याधुनिक कैमरों से स्कैनिंग की जाकर उनकी कम्प्यूटरीकृत इमेज तैयार की जा रही थी। बाद में यह सभी दस्तावेज भू-अभिलेख के पोर्टल पर ऑनलाइन किये जाने थे। इससे लोगों को सहजता से पुराने दस्तावेज भी उपलब्ध हो सकेंगे। यह काम शुरुआती दौर में तेजी से चला भी। सतना जिले में 90 के दशक तक के खसरे व अन्य अभिलेख लगभग पूरी तरह डिजिटल कर भी दिए गये थे। लेकिन इसके बाद 90 से पहले के रिकार्ड को डिजिटल करने का काम संबंधी वेंडर ने बंद कर दिया था। यह काम लगभग 6 माह से बंद था।
अब अचानक टर्मिनेशन की कार्रवाई विगत दिवस आयुक्त भू-अभिलेख ग्वालियर के यहां से एक चिट्ठी सभी जिलों को भेजी गई। जिसमें बताया गया है कि राजस्व अभिलेखों के डिजिटाइजेशन का काम दो कंपनियों को दिया गया था। जिसमें 31 जिलों का काम जीएस सॉफ्टवेयर टेक्नालॉजी प्रा. लिमि. व 21 जिलों का काम राइटर बिजनेस सर्विसेस प्रा. लिमि. को दिया गया। लेकिन इनके द्वारा तय प्रावधानों के तहत काम नहीं किया जा रहा था। इस कारण से दोनों कंपनियों को कार्य से टर्मिनेट कर दिया गया है। इसलिये डिजिटाइजेशन के लिए वेंडर को दिये गये सभी दस्तावेज तत्काल वापस ले लिए जाएं और आगे से कोई भी अभिलेख इन्हें स्कैनिंग के लिये न दिया जाए। इसके साथ ही पूरे प्रदेश में यह काम बंद हो गया है। सतना में एसएलआर कार्यालय ने यह काम बंद कर दिए जाने की पुष्टि की है।
कर रहे थे मिसयूज हालांकि आधिकारिक तौर पर यह जानकारी तो नहीं आई है लेकिन यह पता चला है कि कई जिलों में वेंडर के लोग स्कैन किये गये रिकार्ड पटवारियों को बेच रहे थे। हालांकि इस दस्तावेज का क्या दुरुपयोग होगा यह तो अभी पता नहीं चल सका है लेकिन यह जानकारी शासन स्तर तक भी थी। उधर चर्चा यह भी है कि टेंडर को लेकर आयुक्त कार्यालय में अधिकारियों के बदलने के बाद से उठा-पटक चल रही थी। लिहाजा नये टेंडर की कवायद प्रारंभ थी। ऐसे में इन कंपनियों से काम छीन लिया गया है। लेकिन इस पर सभी अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है।