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सहारनपुर

त्रिपुर बाला सुंदरी शक्ति पीठ के दरबार में दुनियाभर के श्रद्धालु आते हैं शीश नवाने

शक्तिपीठ की पौराणिकता का प्रमाण द्वार पर लगे पत्थर पर अंकित उस भाषा से मिलता है जिसे आज तक पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिक भी नहीं पढ़ पाएं

सहारनपुरSep 15, 2017 / 08:54 pm

Rajkumar

tripur bala maa sundari
देवबंद। आदि अनादि काल से देवबंद में स्थित श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ देश विदेश में रहने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी की उपासना करने वालों को भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। शक्तिपीठ की पौराणिकता का प्रमाण मंदिर के निकासी द्वार पर लगे पत्थर पर अंकित उस भाषा से मिलता है जिसे आज तक पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिक भी नहीं पढ़ पाएं है। शक्तिपीठ का अंतिम जीर्णोद्धार राजा रामचन्द्र महाराज द्वारा कराए जाने की बात प्रचलित है।
ऐतिहासिक नगरी देवबंद के छोर पर स्थित श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ लगभग चैतीस बीघा भूमि में फैला हुआ है जिसमें मन्दिर के अतिरिक्त विशाल देवीकुण्ड, मनमोहक पार्क, संस्कृत महाविद्यालय आदि शामिल है। इस शक्तिपीठ पर ही भारतीय शक-संवत के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की चतुर्दशी पर मेला लगता है जिसमें देश-विदेश के कोने-कोने से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मां बाला सुंदरी अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी यहां पीठ में एक छोटी प्रतिमा में प्राकृत रूप में विराजमान है। चांदी की पिंडी से आवृत इस प्रतिमा को पुजारी आंखें बंद करके स्नान कराने के बाद चंदन और इत्र से सुशोभित कर पुन: आवरण में छिपा देते हैं। बताया जाता है कि पूर्व में किसी पुजारी ने भूलवश स्नान कराते समय आंखें खोल ली थी तो वह अंधा हो गया था।
शक्तिपीठ पर प्रतिवर्ष चैत्र सुदी चैदस से पूर्व तेज हवाएं आंधी तूफान तथा वर्षा के साथ मां शक्तिपीठ में प्रवेश करती है तथा इसी प्रकार वापस लौटती है। ऐसा आदिकाल से होता आ रहा है ऐसा क्यों होता है यह रहस्य अनसुलझा है। इसके बारे में मान्यता है कि माता भगवती देवी मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है तथा लगभग एक सप्ताह के बाद तेज हवाओं व बूंदाबांदी के साथ ही माता त्रिलोकपुर (हिमाचल प्रदेश) के मुख्य मंदिर में वापस लौट जाती है हालांकि मंदिर से जुड़े पंडित सतेंद्र शर्मा का कहना है कि माता सदैव इसी मंदिर में विराजमान रहती है। सिद्धपीठ श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी मंदिर की स्थापना कब और किसने की, इसके पुख्ता प्रमाण तो किसी के पास नहीं है परंतु मारकंडे पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि इस शक्तिपीठ की स्थापना महाभारत काल में हुई थी।
वहीं देवबंद में मां भवानी राज राजेश्वरी मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी मां महाशक्ति जगदम्बा का रूप है। ब्रहमा, विष्णु और महेश तीनों पूरे (शरीर) जिनमें हैं। वह त्रिपुर बाला है। तंत्र सार के मुताबिक मां राजेश्वरी त्रिपुर बाला सुंदरी प्रातरू कालीन सूर्यमंडल की आभा वाली है, उसके चार भुजा एवं तीन नेत्र हैं। वह अपने हाथ में पाश, धनुष-बाण और अंकुश लिए हुए हैं, मस्तक पर बालचंद्र सुशोभित है।

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