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सहारनपुर

Ramadan 2018 : बिना नियत के नहीं होता है रोज़ा

Ramadan 2018 Festival : अगर रोजा रखने के बाद कर लिया ये काम तो एक के बदले रखने होंगे 60 रोजे

सहारनपुरJun 04, 2018 / 03:02 pm

Iftekhar

Roza

बिना नियत के नहीं होता है रोज़ा

देवबंद . रोज़ा एक अहम इबादत है और इसका एक बड़ा सवाब है। एक हदीस में तो यहां तक आया है कि रोज़ेदार जन्नत में एक खास दरवाज़े से जाएंगे, जिसका नाम हय्यान है। यह फजी़लत सिर्फ रोज़ेदारों को हासिल होगी। बाकी लोग दूसरे दरवाज़े से दाखिल होंगे। हम में से बहुत से लोग रोज़े की अहमियत को नहीं समझते और ज़रा ज़रा सी बात पर रोज़ा छोड़ देते हैं और रोज़ा तोड़ देते है। रोज़ा छोड़ देना अपने आप में एक बहुत ही बुरा अमल है। चाय की तलब में या बीड़ी सिगरेट की तलब में या इसलिए कि भूख बर्दाश्त नहीं होती। अल्लाह ताअला को रोज़ा छोड़ना सख्त ना पसंद है। इसमें सिर्फ चंद घंटों के लिए रज़ा के दौरान भूखा-प्यासा रहना है। इसको हासिल करना बहुत अहमियत रखता है और रोज़े रखने वालो को इसका बहुत सवाब मिलता है। रोज़ा रखकर तोड़ना बहुत बड़ा जु़ल्म है। रोज़ा रखकर तोड़ने वाले की दुनिया में सज़ा तो यह है कि एक रोज़े के बदले में 60 रोज़े रखने होगें और यह बहुत बड़ी सज़ा है। ऐसा नहीं करना वालों के लिए आखरियत में इसकी सज़ा मिलेगी।

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रोज़ा रखने से पहले ज़रूरी है कि उसकी नियत की जाये। जब हम रोज़ा रखे तो उसकी नियत होनी ज़रूरी। हालांकि ये जरूरी नहीं है कि जबान से नियत की जाये। दिल में यह नियत होनी चाहिए कि हम रोज़ा रख रहे हैं। अगर दिल में नियत कर ली और ज़बान सें नहीं भी कहा जाए तो तब भी रोज़ा हो जायेगा। अगर किसी ने नियत नहीं की तो वह रोज़ा नहीं होगा। हां अलबत्ता इतनी गुन्जाईश है कि जवाल (सूरज सिर के ऊपर आने का वक्त) से पहले अगर किसी ने रोज़े की नियत नहीं की और वह खा पीकर सो गया या उसने खाया पिया नहीं और नमाज़ से पहले उठकर उस शख्स ने रोज़े की नियत कर ली, लेकिन अगर जवाल के टाईम के बाद नियत की तो उसका रोज़ा नहीं माना जायेगा। इसलिए रोज़े के लिए नियत ज़रूरी है और जो लोग रोज़ा रखते हैं। वह अपने दिल में नियत करें कि मैं अल्लाह के लिए रोज़ा रख रहा हूं और जिनको नियत की दुआ याद हो वो नियत की दुआ पढ़े और नियत करने के लिए दुआ के अल्फाज़ ज़ुबान से कह ले तो बहुत ही अच्छा है और अगर ज़ुबान से न कह पाये तो दिल से नियत कर ले तो यह भी काफी है। नियत के बगैर रोज़ा नहीं होगा। हर रोज़ रोज़े की अलग से नियत करनी होगी। ऐसा नहीं होता पहले रोज़े के दिन ही तमाम रोज़ों की नियत एक साथ ही कर लें। हां एक गुन्जाईश है अगर किसी शख्स ने रोज़े की नियत न ज़ुबान से की और न दिल से की और सहरी खा ली सहरी खाना भी उस शख्स का रोज़ा रखने के इरादे में माना जायेगा।

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