रोज़ा रखने से पहले ज़रूरी है कि उसकी नियत की जाये। जब हम रोज़ा रखे तो उसकी नियत होनी ज़रूरी। हालांकि ये जरूरी नहीं है कि जबान से नियत की जाये। दिल में यह नियत होनी चाहिए कि हम रोज़ा रख रहे हैं। अगर दिल में नियत कर ली और ज़बान सें नहीं भी कहा जाए तो तब भी रोज़ा हो जायेगा। अगर किसी ने नियत नहीं की तो वह रोज़ा नहीं होगा। हां अलबत्ता इतनी गुन्जाईश है कि जवाल (सूरज सिर के ऊपर आने का वक्त) से पहले अगर किसी ने रोज़े की नियत नहीं की और वह खा पीकर सो गया या उसने खाया पिया नहीं और नमाज़ से पहले उठकर उस शख्स ने रोज़े की नियत कर ली, लेकिन अगर जवाल के टाईम के बाद नियत की तो उसका रोज़ा नहीं माना जायेगा। इसलिए रोज़े के लिए नियत ज़रूरी है और जो लोग रोज़ा रखते हैं। वह अपने दिल में नियत करें कि मैं अल्लाह के लिए रोज़ा रख रहा हूं और जिनको नियत की दुआ याद हो वो नियत की दुआ पढ़े और नियत करने के लिए दुआ के अल्फाज़ ज़ुबान से कह ले तो बहुत ही अच्छा है और अगर ज़ुबान से न कह पाये तो दिल से नियत कर ले तो यह भी काफी है। नियत के बगैर रोज़ा नहीं होगा। हर रोज़ रोज़े की अलग से नियत करनी होगी। ऐसा नहीं होता पहले रोज़े के दिन ही तमाम रोज़ों की नियत एक साथ ही कर लें। हां एक गुन्जाईश है अगर किसी शख्स ने रोज़े की नियत न ज़ुबान से की और न दिल से की और सहरी खा ली सहरी खाना भी उस शख्स का रोज़ा रखने के इरादे में माना जायेगा।