यहां मुख्य रूप से दो मंदिर हैं। मां शाकम्भरी देवी maa shakumbhari devi saharanpur के मंदिर से करीब एक किलोमीटर पहले बाबा भूरादेव का मंदिर हैं। शाकम्भरी देवी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करते हैं और फिर मां शाकुम्भरी के मंदिर में पहुंचकर मां शाकम्भरी के दर्शन करते हैं। मुख्य मंदिर के गर्भ ग्रह में शाकम्भरी देवी के साथ-साथ भीमा देवी, भ्रामरी देवी और शताक्षी देवी की मूर्तियां हैं।
चारों ही देवियों की मूर्तियां दिखने में काफी प्राचीन लगती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार शाकम्भरी देवी दुर्गा मां का एक अवतार हैं। जब एक बार प्रथ्वी पर दुर्गम नाम के दैत्य ने आतंक फैला दिया तो उस समय 100 वर्षों तक बरसात नहीं हुई थी। इससे चारों ओर सूखा और अकाल पड़ गया था। लोग भूखे मरने लगे थे। दुर्गम दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे। तब ऐसा लगने लगा था कि धरती पर मनुष्य जाति खत्म हो जाएगी तब आदि शक्ति मां दुर्गा शाकम्भरी देवी के रूप में अवतिरत हुई थी।
शाकम्भरी देवी के साै नेत्र थे। उस समय मां शाकम्भरी ने अपने सभी नेत्रों सो रोना शुर किया तो आंसू निकलने से प्रथ्वी पर जलधारा बह निकली थी। इस तरह मां शाकम्भरी देवी ने दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया था। तभी मां शाकम्भरी देवी मनुष्य जाति के कल्याण के लिए विख्यात हैं। यहां शिवालिक की पहाड़ियों में जसमाैर गांव में माता का मंदिर हैं। यहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। जो श्रद्धालु विशेष मन्नत लेकर आते हैं वह लेटकर माता के मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं।