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विवि के वैज्ञानिक ने बनाए कार्बन नैनोपार्टिकल्स, ये शरीर की स्वस्थ और बीमार कोशिकाओं की करेंगे पहचान

सागर. बदलती दिनचर्या की वजह से कई तरह की बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं। लोगों के स्वस्थ शरीर की पहचान है कि उसमें बीमारी, कीटाणु या कमजोरी न हो। संपूर्ण शरीर को उसे निर्माण करने वाली प्रत्येक कोशिका ही करती है। व्यक्ति के शरीर में बीमार और स्वस्थ कोशिकाओं की पहचान के लिए डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में एक नई रिसर्च हुई है।

सागरJan 16, 2025 / 12:10 pm

रेशु जैन

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विश्वविद्यालय एवं भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई के कोलैबोरेशन में लंदन में प्रस्तुत हुआ शोध, भविष्य में कम खर्च में मिलेंगी कई दवाइयां

सागर. बदलती दिनचर्या की वजह से कई तरह की बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में ले रही हैं। लोगों के स्वस्थ शरीर की पहचान है कि उसमें बीमारी, कीटाणु या कमजोरी न हो। संपूर्ण शरीर को उसे निर्माण करने वाली प्रत्येक कोशिका ही करती है। व्यक्ति के शरीर में बीमार और स्वस्थ कोशिकाओं की पहचान के लिए डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में एक नई रिसर्च हुई है। इस रिसर्च के माध्यम से आसानी से ऐसी कोशिकाओं की पहचान की जा सकती है।विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कार्यरत डॉ. योगेश भार्गव ने यह रिसर्च की है। उन्होंने बताया कि कार्बन एटम से निर्मित नए प्रकार के क्वांटम नैनोपार्टिकल जो कि दस नैनोमीटर से भी सूक्ष्म (एक मीटर का अरबवां हिस्सा) होते हैं पर अपना शोध कार्य किया है। लैब में बनाए गए नैनोपार्टिकल की खूबी ये है कि ये किसी भी रंगों में बनाए जा सकते हैं। इनमें स्वस्थ कोशिका एवं बीमार कोशिकाओं की पहचान करने की शक्ति होती है। ये स्वस्थ कोशिकाओं को हानि नहीं पहुंचाते हैं। इन पर मौजूद अन्य केमिकल फंक्शनल ग्रुप एक दवाई रूपी कार्य करते हैं। ये बीमार कोशिकाओं तक सफलता पूर्वक पहुंचाए जा सकते हैं और उनको पुन: स्वस्थ किया जा सकता है।
लंदन की पत्रिका में हुआ शोध पत्र प्रकाशित

डॉ. योगेश ने बताया कि दो वर्षों की मेहनत के बाद यह शोध पूरा हुआ है। उन्होंने बताया कि नैनोपार्टिकल्स कई तरह के होते हैं। अब तक वैज्ञानिक लैड, आयरन और मैग्नीशियम से नैनोपार्टिकल्स की खोज करते थे। उन्होंने बताया कि लैब में मौजूद बड़ी-बड़ी मशीनों की सहायता कार्बन से नैनोपार्टिकल्स बनाए हैं। अभी हाल ही में एक शोध पत्र इन्हीं कार्बन क्वांटम डॉट्स पर नैनोस्केल पत्रिका (लंदन) से जनवरी 2025 को प्रकाशित हुआ है। यह कार्य विश्वविद्यालय एवं भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई के कोलैबोरेशन में संपन्न हुआ है। उन्होंने बताया कि इसमें पीएचडी छात्र अश्विनी वाघमारे की भूमिका अहम रही है। इस रिसर्च से भविष्य में आम लोगों को कम कीमत पर भी दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।

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