सीमांकन के बाद से अब तक प्रशासन ने तालाब के किनारों पर हुए अतिक्रमण की ओर देखा भी नहीं है। अतिक्रमणकारी आज भी प्रशासन को मुंह चिढ़ा रहे हैं। नियम के मुताबिक तालाब से ३० मीटर तक किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता बावजूद इसके तालाब का पानी अतिक्रमणकारियों के भवनों की दीवारों पर हिलोरे मार रहा है।
तनी हैं रसूखदारों की अट्टालिकाएं
एनजीटी के नियमों के मुताबिक तालाब से ३० मीटर तक किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता बावजूद इसके सागर झील के गऊघाट इलाके में सर्वाधिक निर्माण किए गए हैं। भू-अभिलेख के सीमांकन में इसी इलाके में सर्वाधिक अतिक्रमण चिन्हित किए गए थे। बताया जा रहा है कि परकोटा वार्ड में आने वाले इस इलाके में राजनीतिक रसूखदारों की अट्टालिकाएं तनी हैं। सीमांकन के बाद अतिक्रमण चिन्हित कर रिर्पोट जिला कलेक्टर को सौंप दी गई थी।
निगम व राजस्व अमले ने किया था सीमांकन
तालाब के पर्यावरणीय संरक्षण के लिए करीब दो दशकों से कवायद की जा रही है। करीब डेढ़ साल पूर्व रंग ला रही थी, दरअसल झील संरक्षण के मामले में दीपक तिवारी ने एनजीटी में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर जिला प्रशासन को झील का सीमांकन करा कर अतिक्रमण चिन्हित कर, उन्हें हटाने की कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। इस पर तत्कालीन कलेक्टर विकास नरवाल ने भू-अभिलेख व राजस्व विभाग को निर्देश दिए गए थे। सरकारी दस्तावेजों में छोटी व बड़ी झील को दायरा ८२ हेक्टेयर में फैला है। सीमांकन के लिए भू-अभिलेख विभाग के निर्देशन में राजस्व व नगर निगम कर्मचारियों अधिकारियों की संयुक्त टीम बनाई गई थी। इस टीम ने दो चरणों में करीब ५ दिनों में सीमांकन कर अतिक्रमण चिन्हित किए थे।
प्रभावशालियों की वजह से नहीं हो रही कार्रवाई
प्रशासन के टेबल पर पड़ी अतिक्रमणकारियों की सूची पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बताया जा रहा है कि अतिक्रमण हटाने को लेकर कोई कार्रवाई ना होने के पीछे रसूखदार अतिक्रमणकारियों का प्रभाव बताया जा रहा है। सागर सांसद लक्ष्मीनारायण यादव का निवास, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यालय सहित अन्य लोगों के निवास झील किनारे ही बने हैं। किनारे के मकानों का पानी भी सीधे तौर पर तालाब में जा रहा है।
राकेश अहिरवार, अधीक्षक भू-अभिलेख