हजारों की संख्या में हैं वन्यप्राणी
वर्ष 1975 में स्थापित हुए नौरादेही अभयारण्य के आसपास लगे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों और विभागीय सूत्रों की माने तो अभयारण्य में हजारों की तदात में वन्यप्राणी हैं। अभयारण्य क्षेत्रफल करीब 1197 वर्ग किलो मीटर के दायरे में फैला हुआ है, जो तीन जिलों सागर, नरसिंहपुर और दमोह को अपनी सीमा में समेटे हुए है। वायो डायवर्सिटी के कारण नौरादेही वन्य जीव सेंचुरी का स्थान सबसे अलग है। जानवरों की प्यास बुझाने के लिए कई बड़े तालाबों के अलावा क्षेत्र की जीवनदायनी नदी ब्यारमा व वमनेर एक बड़े हिस्से में पानी की कमी को पूरा करती है।
यह वन्यप्राणी हैं अभयारण्य में
अभयारण्य में बाघा, तेंदुआ, भेडिया, गीदड़, सोनकुत्ता, लकड़बग्घा, लोमड़ी, भालू, चिंकारा, हिरण, नीलगाय, सियार, जंगली कुत्ता, रीछ, मगर, सांभर, चीतल तथा कई अन्य वन्य जीव इस क्षेत्र में पाए जाते हैं। विभागीय जानकारी के अनुसार बीते एक साल से अभयारण्य में तेंदुए भी जहां-तहां नजर आने लगे हैं, जबकि चीतल, हिरण, चिंकारा की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है।
हर तरह के वन्यजीवों के लिए उपयुक्त है
भौगालिक व प्राकृतिक दृष्टि से नौरादेही अभयारण्य बाघों व चीतों के अलावा हर तरह के वन्यजीवों के लिए उपयुक्त स्थान है। यही कारण है कि अभयारण्य के दायरे में बसे करीब ३७ गावों को विस्थापित किया जा रहा है। इसमें अभी तक यहां से 10 गांव को पूर्ण रूप से विस्थापित भी किया जा चुका है। यही कारण है कि जंगलों में मानवीय दखल कम होने के कारण अभयारण्य में वन्यप्राणियों की संख्या में इजाफा हो रहा है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब 10 गांव खाली होने से वन्यप्राणी की संख्या बढ़ी है तो 37 गांव के विस्थापन के बाद स्थिति क्या होगी।
यह की हैं व्यवस्थाएं
– नाइट विजन कैमरे अभयारण्य में लगाए गए हैं।
– ड्रोन से मॉनिटरिंग की जा रही है।
– बाघों के आने के बाद टीमें लगातार सक्रिय हैं।
– घांस के मैदान विकसित किए गए हैं।
हम और बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं
वनों व वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए विभाग तत्पर है। नौरादेही में मानवीय दखल कम होने से वन्यप्राणियों की संख्या में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। खाली हुए गांव घांस के मैदान में तब्दील हो चुके हैं, जिससे वन्यजीवों को एक सुरक्षित महौल मिला है। इसे हम और बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. अंकुर अवधिया, डीएफओ नौरादेही