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एक ऐसा देवी मंदिर जहां नवरात्र में होते है साक्षात चमत्कार, भक्तों के जाएंगे जत्था के जत्था

Maihar ki maa sharda bhawani: song ringtone and temple in India, मां दुर्गा का पर्व नवरात्र 2019 अब कुछ ही दिनों में शुरू होने वाला है,प्रसिद्ध चमत्कारी तीर्थ क्षेत्र मैहर जाने के लिए जत्थों ने फिर तैयारियां शुरू,ऐसी है मैहर की मां देवी की महिमा,भक्तों ने अनेक बार देते मां के चमत्कार

सागरSep 17, 2019 / 01:48 pm

Samved Jain

Maihar: Maa sharda bhawani song ringtone and temple in India

एक ऐसा देवी मंदिर जहां नवरात्र में होते है साक्षात चमत्कार, भक्तों के जाएंगे जत्था के जत्था

सागर. मां दुर्गा का पर्व नवरात्र 2019 अब कुछ ही दिनों में शुरू होने वाला है। ऐसे में मां देवी के भक्तों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। प्रसिद्ध चमत्कारी तीर्थ क्षेत्र मैहर जाने के लिए जत्थों ने फिर तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस बार फिर दमोह और सागर जिले से २० हजार से अधिक भक्तों के मैहर पहुंचने की उम्मीद है। जो अलग-अलग जत्थों और साधनों से मैहर पहुंचेगे और मां देवी के दर्शन कर साक्षात चमत्कार का लाभ लेंगे।

ऐसी है मैहर की मां देवी की महिमा

भक्त बताते है कि देशभर में देवी मंदिरों के 52 शक्ति पीठ स्थापित किए गए है। जिनमें से एक शक्ति पीठ मैहर देवी मंदिर है। जहां मां सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब है, मां का हार। इसीलिए इस स्थल का नाम मैहर है। मध्य प्रदेश में कटनी-सतना के बीच में स्थित मैहर मां शारदा माई के इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। विंध्याचल पर्वत की शिकर माला से लगी हुई त्रिकुटा पहाड़ी पर मां शारदा का भव्य मंदिर है, जो मैहर देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग एक हजार सीढिय़ां तय करनी पड़ती है। वैसे कुछ वर्षों से शारदा प्रबंध समिति द्वारा रोपवे की व्यवस्था उपलब्ध करा दी गई है। जिससे बड़े-बुजुर्ग श्रद्धालुओं को सुगमता से मां के दर्शन होते है।
एक ऐसा देवी मंदिर जहां नवरात्र में होते है साक्षात चमत्कार, भक्तों के जाएंगे जत्था के जत्था

भक्तों ने अनेक बार देते मां के चमत्कार
दमोह के भागीरथ शर्मा बताते है कि वह हर नवरात्र जत्थे के साथ पैदल यात्रा करते हुए मैहर पहुंचते है। जहां मां शारदा मैया के दर्शन पाकर आत्मा को प्रसन्नता मिलती है। शर्मा के अनुसार मां शारदा के दर्शन मात्र से अनेक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। अनेक बार मां के चमत्कार भी उन्होंने साक्षात देखे हैं। दमोह और सागर से ऐसे बड़े-बड़े जत्थे पदयात्रा करते हुए मैहर पहुंचते है। जबकि वाहनों से पहुंचने वालों ने अभी से रिजर्वेशन कराना शुरू कर दिए हैं।

मैहर मंदिर को लेकर प्रचलित हैं ये तीन कहानी

दक्ष की बेटी का शिव प्रेम- Maihar
बताया जाता है कि हजारों वर्ष पहले सम्राट दक्ष की पुत्री सती, शिव से शादी करना चाहती थीं, लेकिन राजा दक्ष इसके खिलाफ थे। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया। इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया था, लेकिन जान-बूझकर उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। सती ने अपने पिता से भगवान शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। दक्ष ने शिव के बारे में अपशब्द कहा, तब इस अपमान से पीडि़त होकर सती मौन होकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ गईं और योग द्वारा वायु तथा अग्नि तत्व को धारण करके अपने शरीर को अपने ही तेज से भस्म कर दिया, जब शिवजी को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और यज्ञ का नाश हो गया। तब भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 हिस्सों में विभाजित कर दिया।

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चरवाहे की कहानी- Maihar
बताते हैं कि मैहर में दुर्जन सिंह जुदेव नाम के राजा शासन करते थे। उन्हीं के राज्य का एक चरवाहा गाय चराने के लिए जंगल में जाया करता था। एक दिन गाय का पीछा करते हुए उसने देखा कि वह पहाड़ी की चोटी में स्थित गुफा में चली गई और उसके अंदर जाते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। वह वहीं द्वार पर बैठ गया। उसे पता नहीं कि कितनी देर के बाद द्वार खुला। लेकिन उसे वहां एक बूढ़ी मां के दर्शन हुए। तब चरवाहे ने उस बूढ़ी महिला से कहा, ‘माई मैं आपकी गाय को चराता हूं, इसलिए मुझे पेट के वास्ते कुछ दे दों। तब बूढ़ी माता अंदर गई और लकड़ी के सूप में जौ के दाने उस चरवाहे को दिए और कहा, ‘अब तू इस जंगल में अकेले न आया कर। चरवाहे ने घर आकर जौ के दाने वाली गठरी खोली, तो हैरान हो गया। उसने सोचा- मैं इसका क्या करूंगा। सुबह होते ही राजा के दरबार में हाजिर होऊंगा और उन्हें आप बीती सुनाऊंगा। दूसरे दिन दरबार में वह चरवाहा अपनी फरियाद लेकर पहुंचा और राजा के सामने पूरी आप बीती सुनाई।

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आल्हा-ऊदल- Maihar
दो बीर भाई आल्हा-उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध लड़ा था, वो भी शारदा माता के भक्त हुआ करते थे। इन्हीं दोनों ने सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में बारह सालों तक घोर तपस्या कर मां शारदा माता को प्रसन्न किया। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था, कहते हैं कि दोनों भाइयों ने भक्ति-भाव से कई बार अपनी जीभ व सिर माता शारदा को अर्पण कर दिया था, जिसे मां शारदा ने उसी क्षण वापस कर दिया। आल्हा देव माता शारदा को माई कह कर पुकारा करते थे, और तभी से ये मंदिर माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी मान्यता है कि माता शारदा के सर्वप्रथम दर्शन आल्हा और ऊदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से दो किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और ऊदल कुश्ती लड़ा करते थे। कहा जाता है कि यहां पर आल्हा और ऊदल अब भी रोजाना मां के दर्शन करने आते हैं।

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