3 दिन में 60 हजार हो गए खर्च पिता दिनेश अहिरवार ने बताया कि बेटी प्रियांशी की तबीयत 31 जुलाई की रात अचानक खराब हो गई थी। उसे उल्टी-दस्त और तेज बुखार होने के बाद बेहोशी की हालात में घुवारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से टीकमगढ़ जिला अस्पताल ले जाया गया। 1 दिन टीकमगढ़ में इलाज चला लेकिन बेटी को होश नहीं आया। इसके बाद झांसी मेडिकल कॉलेज ले गए, वहां भी आराम नहीं मिला तो परिजनों ने पैसों की व्यवस्था कर निजी अस्पताल में भर्ती कराया, 3 दिन में पूरे पैसे खर्च हो गए।
क्रिटिकल हालात में जिला अस्पताल पहुंची थी बच्ची परिवार के लोग जब प्रियांशी को वापिस अपने गांव धधोरा लाए तो दिनेश के मित्र कलूघोषी ने बेटी को सागर ले जाने की सलाह दी। 6 अगस्त को जब प्रियांशी जिला अस्पताल पहुंची तो उसके हाथ-पैर काम करना बंद हो गए थे। वह अभी भी बेहोश थी।
डॉक्टर्स की मेहनत रंग लाई, मंगलवार को हुई छुट्टी पीआइसीयू इंचार्ज डॉ. प्रशांत तिवारी, डॉ. बृजेश खरया, डॉ. विजयेंद्र राजपूत, डॉ. बृजेश यादव सहित डीएनबी स्टूडेंट्स और पीआइसीयू स्टाफ ने दो दिन तक दिन-रात मेहनत की। डॉ. बृजेश यादव ने मस्तिष्क बुखार का इलाज किया, जिसके बाद प्रियांशी ने हाथ-पैर चलाना शुरू किए तो उम्मीद बंध गई, तीसरे दिन पलक झपकने लगीं। 10 अगस्त को उसे होश आ गया। उसने चलना फिरना शुरू किया और 20 अगस्त को उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
यहां आकर डॉ. बृजेश यादव ने बताया कि बेटी को मस्तिष्क बुखार था, अभी तक यही समझ रहे थे कि हैजा के कारण बच्ची की जान पर बन आई है, उम्मीद छोड़ चुके थे लेकिन डॉक्टर्स ने बेटी की जान बचा ली। जेब में मात्र 500 रुपए ही बचे थे लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टर्स ने वह भी खर्च नहीं होने दिए।
दिनेश अहिरवार, बच्ची का पिता। प्रियांशी के छुट्टी के दिन हम सभी लोग उसके पास मौजूद थे, बेटी को स्वस्थ देख उसके परिजन भी बेहद खुश थे। मरीजों की जान बचाना हमारा कार्य है, लेकिन हमारे डॉक्टर्स जब एक्सट्रा इफेक्ट डालकर कार्य करते हैं तो निश्चित ही टीम को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सभी डॉक्टर्स व स्टाफ तारीफ के हकदार हैं।
डॉ. आरएस जयंत, सिविल सर्जन।