लाखों-करोड़ों संयमियों में एक तपस्वी होता है: मुनि सुधा सागर
भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज ने कहा कि लाखों-करोड़ों संयमियों में से कोई एक तपस्वी होता है। आपको व्रत लेने का भाव आ रहा है, तो आप अविरत सम्यकदृष्टि हैं, अन्यथा मिथ्यादृष्टि हो।
भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा
भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज ने कहा कि लाखों-करोड़ों संयमियों में से कोई एक तपस्वी होता है। सागर. भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज ने कहा कि लाखों-करोड़ों संयमियों में से कोई एक तपस्वी होता है। आपको व्रत लेने का भाव आ रहा है, तो आप अविरत सम्यकदृष्टि हैं, अन्यथा मिथ्यादृष्टि हो। आप व्रती हो तो क्या मुनि बनने की छटपटाहट है? यदि आपको मुनि बनने का भाव नहीं आ रहा है, तो प्रतिमाधारी भी नहीं, मिथ्यादृष्टि हो। बनो या न बनो, लेकिन लक्ष्य तो अगली क्लास में जाने का करना है। ऐसी निरंतर दृष्टि बनी रही, तो तुम गृहस्थ होकर भी तपस्वी हो।
दुनिया मुझे अपना मानती रहे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता, ज्ञानी व्यक्ति किसी को अपना नहीं मानता। सम्यकदर्शन यही सिखाता है कि दुनिया में रहो, लेकिन दुनिया के होके मत रहो। दुनिया को लगे कि तुम मेरे हो लेकिन तुम किसी के मत होना। मुनि ने कहा कि जो व्यक्ति संसार में नाटक करना सीख गया उसको सम्यकदर्शन हो जाता है। सारे रिश्तों को वह निभाता है, लेकिन वह स्वयं रिश्तेदार नहीं बनता। अपने अनुभव को वह जानता है कि मैं कौन हूँ, ये तो सब नाटक है, मनोरंजन है, आत्मरंजन नहीं। धर्मात्मा पर, सीधे लोगों पर उपसर्ग क्यों आते है, क्योंकि दुनिया में उनका धर्म प्रकट हो गया। उनको पता चल गया कि ये धर्मात्मा बन गया, ये कुछ नहीं करेगा, मारो, पीटो कितना भी कुछ कर लो। साधु को दुनिया सुखी नहीं रहने देगी क्योंकि साधू है सज्जन है।
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