मुनि सेवा समिति के मुकेश जैन ढाना ने बताया कि संजोग समिति के द्वारा खीर वितरण का कार्यक्रम कटरा बाजार में दोपहर में होगा। उसके अलावा मकरोनिया चौराहे पर नमक मंडी, भाग्योदय अस्पताल के पास आचार्य विद्यासागर बस स्टैंड के सामने, बड़ा बाजार आदि मे खीर वितरण का कार्यक्रम होगा। भाग्योदय परिसर में सागर नगर की सभी 25 जैन पाठ शालाओं के बच्चे मुनिश्री का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं। रात्रि में भाग्योदय के पंडाल में महाआरती विद्याधर से विद्यासागर नाटिका की प्रस्तुति होगी।
५० प्रतिशत की मिलेगी छूट
भाग्योदय अस्पताल में 20 अक्टूबर शरद पूर्णिमा से 22 अक्टूबर तक पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, सोनोग्राफी, एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई आदि की जांचों पर 50 प्रतिशत की छूट रहेगी। भाग्योदय तीर्थ अस्पताल में प्रत्येक जांच में लगभग 25 प्रतिशत की छूट नियमित मिल रही थी। अब 20 से 22 अक्टूबर 3 दिन तक 50 प्रतिशत छूट रहेगी।
७५ दीपकों से होगी आरती गुरु गुणगान महोत्सव का आयोजन नेहा नगर में किया गया है। इस अवसर पर सुबह आचार्य विद्यासागर की महापूजन पाठ शाला के बच्चों के द्वारा की जाएगी एवं आर्यिका के मंगल प्रवचन होंगे। शाम को 75 दीपों से महाआरती एवं उनके जीवन पर आधारित आर्यिका पूर्णमति माता द्वारा रचित नाटक गुरू गौरव गाथा का मंचन विद्या पूर्ण ग्रुप गोटेगांव के बच्चों द्वारा किया जाएगा।
आचार्यश्री के जीवन के जुड़े कुछ पहलु
विद्याधर आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्रीमती ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो विद्याधर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके तपोबल की आभा में हर वस्तु उनके चरणों में समर्पित होती चली गई।
कम उम्र में कठिन साधना कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए विद्याधर ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी।