यह प्राचीन मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर में है। अरावली की पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर गढ़ गणेश मंदिर के नाम से विख्यात है। मंदिर तक जाने के लिए करीब 500 मीटर की चढ़ाई पूरी करनी पड़ती है। मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय ने कराया था। जब उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया तब तांत्रिक विधि से इस मंदिर की स्थापना कराई थी। मंदिर में मूर्ति की तस्वीर लेना प्रतिबंधित है। हर साल गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन यहां पर भव्य मेला लगता है। यहां गणेशजी की पुरुषाकृति प्रतिमा विराजमान है। इस मूर्ति की सबसे खास बात यह है कि यह बिना सूंड वाले गणेशजी की प्रतिमा है। यहां भगवान गजानन के बाल रूप की पूजा होती है। गणेश मंदिर गढ़ जैसा नजर आता है। पहाड़ी पर स्थित गढ़ गणेश मंदिर से पूरा जयपुर शहर नजर आता है। यहां से एक तरफ नाहरगढ, दूसरी तरफ पहाड़ी के नीचे जलमहल और सामने बसे शहर का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है।
जयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य जिस चंद्र महल में रहते थे उसकी उपरी मंजिल से इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के सीधे दर्शन होते हैं। राजपरिवार गढ़ गणेशजी के दर्शन करके ही अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते थे। मंदिर में दो बड़े मूषक भी हैं। मान्यता है कि मूषक के कानों में अपनी मनोकामना व्यक्त करने पर भगवान गणेश उसे पूरी कर देते हैं। इसी कारण यहां आनेवाले गणेशभक्त मूषक के कान में कहकर मन्नत मांगते हैं।