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Durga Saptshati Path: ये हैं दुर्गा सप्तशती पाठ अनुष्ठान के नियम, मनोकामना सिद्धि और संपूर्ण लाभ के लिए जानना जरूरी

Durga Saptashati Path rules श्री दुर्गा सप्तशती मंत्र मां भगवती के प्रिय मंत्र हैं, यह मार्कण्डेय पुराण का ही हिस्सा है। इसमें महिषासुर पर माता की विजय का वर्णन है, जिसे देवी महात्म्य और चंडी पाठ नाम से भी जाना जाता है। ऋषि मार्कण्डेय रचित 700 श्लोक वाले इस ग्रंथ के मंत्रों के पाठ और चंडी होम से भक्त को आरोग्य और हर तरह के शत्रुओं पर विजय मिलती है, सुख समृद्धि प्राप्त होती है। लेकिन इस अनुष्ठान को करने के कुछ नियम हैं, संपूर्ण पाठ के लिए इसे जानना जरूरी है..

Feb 11, 2024 / 12:50 pm

Pravin Pandey

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दुर्गा सप्तशती पाठ का नियम

आइये जानते हैं दुर्गा सप्तशती पाठ अनुष्ठान के नियम
दुर्गा सप्तशती की शुरुआत से पहले संकल्प पूजा की जाती है। इसके बाद देवी कवचम्, अर्गला, कीलकम् और अन्य स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। आइये जानते हैं पाठ के नियम..
सबसे पहले साधक स्नान करके पवित्र होकर आसन-शुद्धि की क्रिया संपन्न करे और शुद्ध आसन पर बैठे। इसके बाद शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक अपने सामने लकड़ी के शुद्ध आसन पर विराजमान कराए। इसके बाद माथे पर अपनी रूचि के अनुसार भस्म, चंदन या रोली लगाए और अपनी ***** बांध लें फिर पूर्व की तरफ मुंकर तत्त्व-शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें, इसके बाद ये चार मंत्र पढ़ें..
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥

तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं और गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर
ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः
उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्यते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
इसके बाद कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृति-पुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकनाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्वविधपीडा-निवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुःपुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट-फलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठवेदतन्त्रोक्त-रात्रिसूक्तपादेव्यथर्वशीर्षपाठन्यास-विधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यासध्यानसहित-चरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।” इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये।
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्णमन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिये। इसके अनेक प्रकार हैं।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यैशापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।

इस मन्त्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे। यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है। इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्तमें इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है-
ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिकेउत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।

इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जप करना चाहिये, जो इस प्रकार है-

ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्येमृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।
मारीचकल्पके अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है-

ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभयमोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।

इस मन्त्र का आरम्भ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिये, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका-शाप-विमोचन मन्त्रों का आरम्भ में ही पाठ करना चाहिये। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥1॥

ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥2॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥3॥

ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥4॥

ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥5॥

ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥6॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥7॥

ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥8॥

ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥9॥

ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥10॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥11॥

ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥12॥

ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥13॥

ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥14॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥15॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥16॥

ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै

ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥17॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी

महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥18॥

इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर।

चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥19॥

एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः।

आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥20॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के बाद अन्तर्मातृका-बहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताए अनुसार नौ कोष्ठोंवाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छः अंगोंसहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है। इसके बाद क्रमशः कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य का पाठ करें।

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