शंकराचार्य का जन्मः आदि शंकराचार्य के बचपन का नाम शंकर था, इनका जन्म 507-508 ई. पू. केरल में कालपी नाम के ग्राम में शिवगुरु भट्ट और माता सुभद्रा के घर हुआ था। ये बचपन से ही मेधावी थे, आठ वर्ष की अवस्था में संन्यास ग्रहण कर लिया था। इन्हें प्राच्य परंपरा में भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।
अद्वैत वेदांत का प्रचारः आदि शंकराचार्य ने भागवतगीता, वेदांत सूत्र और उपनिषद की टीका भी लिखी। ये कुछ दिन काशी में रहे, इसके बाद 16 वर्ष की आयु में बदरिकाश्रम पहुंचे यहां ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। बाद में विजिलबिंदु के तालवन (दरभंगा) में मंडनमिश्र को शास्त्रार्थ में परास्त किया। इसके बाद भारतवर्ष में भ्रमण किया, अद्वैत वेदांत का प्रचार किया। ब्रह्म ही सत्य है जगत माया है और आत्मा की गति मोक्ष में है, इसका प्रचार किया। उन्होंने हिंदू धर्म की कुरीतियां दूर किया ।
चार पीठ की स्थापनाः आदि शंकराचार्य ने वैदिक धर्म की पुनरोत्थान किया। 32 वर्ष की अल्पायु में 477 ई. पू. ये केदारनाथ के पास शिवलोक गमन कर गए। इससे पहले इन्होंने देश के चारों कोनों में चार पीठ स्थापित कर भारत की एकता सुनिश्चित की। ये चारों पीठ उत्तर में बदरिकाश्रम, पश्चिमा द्वारिका शारदापीठ, दक्षिण में शृंगेरी पीठ और जगन्नाथपुरी गोवर्धनपीठ हैं। इन्होंने दशनामी अखाड़ों की स्थापना भी की, जिनको अलग-अलग कार्य दिए गए।
समाधिः आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में समाधि ली थी, उन्होंने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। इनकी समाधि मंदिर के पीछे स्थित है।