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दुनिया के इस प्राचीन मंदिर में न्यायाधीश शनि देते हैं इच्छित वरदान

दुनिया के प्रमुख व प्राचीनतम शनि मंदिरों में से एक है ये उत्तर भारत का मंदिर…

May 08, 2020 / 09:59 pm

दीपेश तिवारी

one of the most important temple of shani dev : kokilavan at kosikalan

one of the most important temple of shani dev : kokilavan at kosikalan

शनिदेव को ज्योतिष में न्याय का देवता माना जाता है। न्यायकारी होने के कारण उनके दंड के विधान के चलते हर कोई इनसे खौफ खाता है। ज्योतिष में जहां शनि को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। वहीं जानकारों का कहना है कि शनि केवल आपके कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं, ऐसे में यदि आपके द्वारा गलत कर्म किए गए हैं तो आपको न्याय के विधान के तहत दंड मिलेगा। वहीं यदि आपके कर्म काफी अच्छे रहे हैं तो शनिदेव इसका फल पुरस्कार के रूप में भी देते हैं।

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शनिदेव की निगाह को हमेशा घातक माना जाता है, ऐसे में ही एक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण ने घरती पर अवतरण लिया तो सभी देव उनके बाल रूप के दर्शन के लिए नंद गांव में आए। ऐसे में एक बार शनि भी श्रीकृष्ण से मिलने आए तो मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने उन्हें नंद गांव से करीब 2 किमी दूर ही कोकिलावन में रोक दिया और कहा कि समय आने पर मैं स्वयं तुमसे मिलने आउंगा।
कृष्‍ण ने कहा कि वे नंद गांव के निकट वन में ही तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए।
World's one of the oldest Shani temple kokilavan at kosi kalan

इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी।

मिलता है इच्छित वरदान

श्रीकृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया। यही स्थान आगे चल कर शनिदेव का प्रसिद्ध धाम बन गया, जो आज शनिदेव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जहां हर शनिवार को हजारों की संख्या में भक्त शनिदेव के दर्शन करने व इच्‍छित वरदान मांगने आते हैं।

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दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक
जानकारों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कृष्‍ण के ब्रजमंडल में शनिदेव का एक सिद्ध स्‍थान कोसीकलां गांव के पास कोकिलावन के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्‍थान कोसी से लगभग 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से करीब 2 किमी की दूरी पर है। यह शनि मंदिर दुनिया के प्राचीनतक शनि मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां शनिदेव दंड देने की जगह पर इच्‍छित वरदान देने वाले की भूमिका में आ जाते हैं। कहा जाता है यहां मांगी मुराद शीघ्र पूरी होती है।

शनि को नंद बाबा ने रोका…
इस मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान कृष्ण के समय से स्थापित इस मंदिर को स्‍वयं कान्‍हा के वरदान के बाद यहां स्‍थान मिला था। इस कथा के अनुसार जब कृष्‍ण जन्‍म पर अन्‍य देवताओं के साथ उनके बाल रूप के दर्शन के लिए अन्‍य देवताओं के साथ गए शनि को नंद बाबा ने रोक दिया, क्‍योंकि वे उनकी वक्र दृष्‍टि से भयभीत थे।

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तब दुखी शनि को सांत्‍वना देने के लिए कृष्‍ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए। इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी। कृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया।

मिलती है शनि की कृपा
तब से शनि धाम के बाईं ओर कृष्‍ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं और भक्त किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर जब यहां आते हैं, तो उनकी इच्‍छा शनि पूरी करते हैं। मान्‍यता है कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।

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ऐसे पहुंचे शनि के धाम…
मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां गांव पड़ता है। यहां से एक रास्‍ता नंदगांव तक आता है, वहीं से कोकिला वन शुरू हो जाता है।

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