बाबा ने कनाडाई से यह कहा
बाबा नीम करोली के भक्त कृष्णा दास के अनुसार एक दिन एक कनाडाई व्यक्ति नीम करोली बाबा (महाराज-जी) के पास आया। वह महाराज जी के बारे में ज्यादा नहीं जानता था लेकिन उसने उनके बारे में काफी कुछ सुन रखा था। उसने सुना था कि महाराज जी कोई व्याख्यान नहीं देते और न कोई औपचारिक शिक्षा देते हैं, उन्होंने किताबें भी नहीं लिखीं हैं फिर भी वे सूरज की तरह चमकते हैं। भक्तों के लिए कोई मैनुअल भी नहीं है।
इसलिए जब महाराज जी ने कनाडाई से पूछा कि वह क्यों आया है और वह क्या चाहता है तो उसे समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। लेकिन उसने कहा कि ‘क्या आप मुझे सिखा सकते हैं कि ध्यान कैसे किया जाता है?’ इस पर महाराज जी ने कहा ‘मसीह की तरह ध्यान करो।’ नीम करोली बाबा ने उससे कहा, जाओ मंदिर के पीछे पश्चिमी देशों के भक्त बैठे हैं, उन्हें के साथ अभ्यास करो।
भक्तों में छाया उत्साह
इस पर वह आदमी पीछे आया, यहां पहले से बैठे लोगों ने उसके बारे में पूछा। उसने बताया कि महाराज जी ने ईसा मसीह की तरह ध्यान करने को कहा है। पहले तो सब हैरान रह गए कि इसका मतलब क्या है? लेकिन फिर सबकी ध्यान में आया कि उन्होंने महाराज जी से कई बार पूछा है कि उन्हें क्या करना चाहिए, पर योग या ध्यान से संबंधित उन्होंने कोई विशेष निर्देश नहीं दिया। लेकिन अब जब उन्होंने ऐसी बात कही है तो इसका अर्थ है वे जानते हैं कि ईसा मसीह कैसे ध्यान करते थे। इस बारे में सभी भक्तों ने पूछने का संकल्प लिया और वे उत्साहित हो गए कि उन्हें गुप्त शिक्षाएं मिलने वाली हैं।
कृष्णादास ने बताया कि बाद में जब महाराज जी हमारे साथ घूमने के लिए मंदिर के पीछे आए, तो उस विषय पर चर्चा शुरू की, उसने पूछा कि आपने कहा था कि मसीह की तरह ध्यान करो तो बताइये यीशु कैसे ध्यान करते थे? ऐसा लगा कि महाराज जी जवाब देने वाले हैं, तभी उनकी आंखें बंद हो गईं और वे वहीं पूरी तरह से शांत होकर बैठे गए। उन्होंने महसूस किया कि जैसे बाबा वहां हों ही ना। कृष्णादास ने बताया कि वे जितने समय तक नीम करोली बाबा के साथ रहे, इससे पहले मुश्किल से दो बार इस तरह से निश्चल देखा था। ऐसा लग रहा था मानो पूरा ब्रह्मांड शांत हो गया हो, तभी बाबा के गाल पर आंसू टपक आ गया और सब आश्चर्य में पड़ गए।
कुछ मिनटों के बाद, बाबा नीम करोली की आंखें आधी खुलीं और अत्यधिक भावुकता के साथ उन्होंने धीरे से कहा, उन्होंने खुद को प्यार में खो दिया, इस तरह उन्होंने ध्यान लगाया। वह सभी प्राणियों के साथ एक समान भाव रखते थे। वह हर किसी से प्यार करते थे, यहां तक कि उन लोगों से भी जिन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया था। वह कभी नहीं मरा, वह आत्मा स्वरूप है। वह सभी के दिलों में रहते हैं, उन्होंने खुद को प्यार में खो दिया।
भक्तों को समझ में आया मतलब
कृष्णा दास ने बताया कि इसके बाद फिर महाराज जी शायद इसके केंद्र में चले गए थे। मैं चकित रह गया। ऐसा कुछ भी नहीं था जो मैं खुद को प्यार में खो देने से ज्यादा चाहता था, ऐसा कुछ भी नहीं था जो इससे दूर लगता हो। जैसा कि कबीर ने एक बार कहा था, ”आग की तपिश सहना आसान है और उसी तरह तलवार की धार पर चलना भी संभव है। लेकिन प्यार में दृढ़ रहना कभी न बदलना सबसे मुश्किल काम है।