इससे खुश शाह ने मंदिर के पुजारी से हवन का अनुष्ठान कराया, जिस दिन पूर्णाहुति थी, उस दिन वे प्रसाद लेकर घर आ रहीं थीं तो शाह ने देखा कि रास्ते भर एक दुबला पतला साधु उनके पीछे-पीछे चला आ रहा है। साधु के काफी देर से उनके पीछे-पीछे आने के कारण शाह परेशान हो रहीं थीं।
विधा शाह का घर बाजार में था, और घर आने का रास्ता एक पंजाबी परिवार के घर से होकर जाता था। बाबा को नहीं पहचान रही विधा शाह जल्दी-जल्दी घर की संकरी सीढ़ियां चढ़ने लगीं और घर के भीतर चली गईं। इधर, साधु भी पीछे-पीछे जाता रहा, तभी पंजाबी परिवार की महिला घर से बाहर निकली और साधु को डांटा और वहां से भगा दिया। महिला समझ नहीं पाई कि साधु शाह के पीछे-पीछे क्यों जा रहा है।
इस घटना के कुछ समय बाद जब विधा शाह बाबा के पास बैठीं थीं तो उनके मन में खयाल आया कि बाबा ने घर आने की बात कही थी, इनके कहे अनुसार यज्ञ भी कराया पर बाबा नहीं आए। इस पर बाबा नीम करोली बोल उठे, ‘हम तो वहां गए थे, पर तेरे यहां की पंजाबिन ने हमें भगा दिया।’ इस तरह विधा शाह बाबा को पहचान ही न पाईं। इस बात की विधा को अपने पर बहुत ग्लानि हुई। बाद में उन्होंने लोगों को बताया कि बाबा तो किसी भी रूप में आपको मिल सकते है, बस आप पहचान लीजिए।
हर संकट में बाबा पहुंच जाते थे पार लगाने
कुछ भक्त सन 1968 का बाबा का चमत्कार बताते हैं । भक्तों के अनुसार बाबा के एक भक्त की बेटी प्रसव काल मे थी और वह कष्ट से बेहाल थी। भक्त के घरवाले परेशान थे। डॉक्टरों ने भी लाचारी व्यक्त कर दी थी, डॉक्टर किसी भी तरह का ढांढ़स घर वालों को दिला नहीं पा रहे थे कि ऑपरेशन के बाद प्रसूता की जान बच जाएगी या नहीं। इसी समय अचानक वहां महाराजजी आ गए और सीधे उनकी बेटी के कमरे में जाकर बैठ गए।