देवी चंद्र घंटा का स्वरूप
माता चंद्रघंटा का ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा गया है।
इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के तीन नेत्र और दस हाथ हैं। वे गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। मां चंद्रघंटा अग्नि जैसे वर्ण वाली, ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी हैं। सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की है। इनकी घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं।
ये है मां चंद्रघंटा के स्वरूप की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राक्षस महिषासुर ने अपनी शक्तियों के घमंड में देव लोक पर आक्रमण कर दिया। घमासान युद्ध में जब देवता हारने लगे तो वह बारी-बारी से त्रिदेवों के पास मदद के लिए पहुंचे। इनकी व्यथा सुनकर मां आदिशक्ति ने अपने चंद्रघंटा स्वरूप को प्रकट किया। इस स्वरूप को भगवान विष्णु ने अपना चक्र, भगवान शिव ने त्रिशूल, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता को कई अस्त्र शस्त्र प्रदान किए, जिसके बाद माता चंद्रघंटा ने राक्षस का वध कर दिया।
देवी पुराण के अनुसार बाद में यही देवी राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्मी, जब कालांतर में भगवान अर्धनारीश्वर शिव इनसे शादी करने पहुंचे तो वे बालों में कई सांप, भूत, ऋषि, भूत, अघोरी और तपस्वियों की एक अजीब शादी के जुलूस के साथ भयानक रूप हिमालय राज के महल पहुंचे तो पार्वती की मां मैना देवी को शिव का ऐसा वेश दिखा कि वे बेहोश हो गईं, तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया, जिसके बाद मैना देवी ने दोनों की शादी की स्वीकृति दी और दोनों का विवाह हुआ।