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सैनिक को गोलियों से बचाने वाले बुजुर्ग और कंबल का रहस्य, लोग क्यों चढ़ाते हैं बाबा नीम करोली को कंबल

20वीं सदी के संत बाबा नीम करोली के चमत्कार की कहानियां भक्तों में खूब प्रचलित हैं, ऐसी ही एक कहानी है जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। इसके अलावा पढ़िए नीम करोली बाबा को क्यों चढ़ाते हैं कंबल (baba neem karoli blanket mystery )..

Jun 01, 2023 / 01:16 pm

Pravin Pandey

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baba neeb karori

मनोवैज्ञानिक रिचर्ड एल्पर्ट जो नीब करोरी बाबा से मिलने के बाद बाबा रामदास बन गए। उन्होंने 1979 में नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर एक पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ लव’ नाम से लिखी है। इसमें उन्होंने ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र किया है।

बाबा रामदास ने किताब में लिखा है कि बाबा नीम करोली हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे। इसीलिए लोग जब भी कैंची धाम या बाबा के किसी अन्य आश्रम में जाते हैं तो मंदिर में कंबल भेंट करते हैं। इस कंबल को लेकर सन 1943 की एक कहानी भी है। इसके अनुसार एक बुजुर्ग दंपति बाबा का भक्त था, यह परिवार फतेहगढ़ में रहता था।

पढ़िए पूरी कहानी


कहानी के अनुसार एक दिन बाबा बुजुर्ग दंपति के घर पहुंच गए, उनका बेटा ब्रिटिश सेना में था और द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा फ्रंट पर तैनात था। दंपति के घर पहुंचे बाबा ने कहा कि रात में यहीं रूकेंगे। इससे भक्त खुश तो बहुत हुए लेकिन उन्हें एक दुख भी था कि उस समय उनके घर में महाराजजी की सेवा करने के लिए कुछ खास था नहीं।

फिर भी उन्होंने जो कुछ था उसी से बाबा का सत्कार किया। इसके बाद बाबा नीम करोली एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए। सोने से पहले उन्होंने हिदायत दे रखी थी कि सोते समय उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे। इस पर दोनों बुजुर्ग भी सोने चले गए।

थोड़ी देर बाद महाराजजी कराहने लगे। इससे बुजुर्ग दंपति की नींद खुल गई, वे चारपाई के पास बैठे रहे कि पता नहीं महाराजजी को क्या हो गया। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे महाराजजी को कोई मार रहा है। सुबह बाबा उठे और कंबल को बजुर्ग को देते हुए कहा कि इसे गंगा में बहा देना। इसे खोलकर देखना नहीं। जाते वक्त बाबा ने यह भी कहा कि चिंता मत करना महीने भर में बेटा लौट आएगा।
ये भी पढ़ेंः Neem Karoli Baba: ये है बाबा नीम करोली का असली नाम, यहां जानिए कैसे बदलते गए संत के नाम

बुजुर्ग ने बहाया कंबल


इधर, जब बुजुर्ग कंबल लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया कि इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है। हालांकि बाबा ने तो उनके सामने ही कंबल लपेटकर उन्हें दिया था। हालांकि उन्होंने बाबा की आज्ञा के अनुसार कंबल वैसे ही नदी में बहा दिया।

करीब एक माह के बाद बुजुर्ग का इकलौता बेटा बर्मा फ्रंट से लौटा तो वे लोग बहुत खुश हुए और उसने घर पर सबको बताया कि एक दिन वह दुश्मन की फौज से घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई, उसके सारे साथी मारे गए। लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बचा, मुझे पता नहीं।

रातभर वह जापानी फौज की गोलीबारी के बीच जिंदा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश सैनिक आए तो उसकी जान में जान आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा दंपति के घर रूके थे। भक्तों का मानना है कि यह बाबा ही थे जो सैनिक को बचा रहे थे।मनोवैज्ञानिक रिचर्ड एल्पर्ट जो नीब करोरी बाबा से मिलने के बाद बाबा रामदास बन गए। उन्होंने 1979 में नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर एक पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ लव’ नाम से लिखी है। इसमें उन्होंने ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र किया है।

बाबा रामदास ने किताब में लिखा है कि बाबा नीम करोली हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे। इसीलिए लोग जब भी कैंची धाम या बाबा के किसी अन्य आश्रम में जाते हैं तो मंदिर में कंबल भेंट करते हैं। इस कंबल को लेकर सन 1943 की एक कहानी भी है। इसके अनुसार एक बुजुर्ग दंपति बाबा का भक्त था, यह परिवार फतेहगढ़ में रहता था।
ये भी पढ़ेंः नीम करोली बाबा ने बताए हैं वक्त बदलने के ये संकेत, आपकी लाइफ में तो नहीं घट रहीं ऐसी घटनाएं


कहानी के अनुसार एक दिन बाबा बुजुर्ग दंपति के घर पहुंच गए, उनका बेटा ब्रिटिश सेना में था और द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा फ्रंट पर तैनात था। दंपति के घर पहुंचे बाबा ने कहा कि रात में यहीं रूकेंगे। इससे भक्त खुश तो बहुत हुए लेकिन उन्हें एक दुख भी था कि उस समय उनके घर में महाराजजी की सेवा करने के लिए कुछ खास था नहीं।

फिर भी उन्होंने जो कुछ था उसी से बाबा का सत्कार किया। इसके बाद बाबा नीम करोली एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए। सोने से पहले उन्होंने हिदायत दे रखी थी कि सोते समय उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे। इस पर दोनों बुजुर्ग भी सोने चले गए।

थोड़ी देर बाद महाराजजी कराहने लगे। इससे बुजुर्ग दंपति की नींद खुल गई, वे चारपाई के पास बैठे रहे कि पता नहीं महाराजजी को क्या हो गया। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे महाराजजी को कोई मार रहा है। सुबह बाबा उठे और कंबल को बजुर्ग को देते हुए कहा कि इसे गंगा में बहा देना। इसे खोलकर देखना नहीं। जाते वक्त बाबा ने यह भी कहा कि चिंता मत करना महीने भर में बेटा लौट आएगा।
ये भी पढ़ेंः Baba Neem Karoli: बाबा नीम करोली के रोचक किस्से, पढ़कर हो जाएंगे हैरान

दंपति के बेटे ने सुनाई यह कहानी


इधर, जब बुजुर्ग कंबल लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया कि इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है। हालांकि बाबा ने तो उनके सामने ही कंबल लपेटकर उन्हें दिया था। हालांकि उन्होंने बाबा की आज्ञा के अनुसार कंबल वैसे ही नदी में बहा दिया।
करीब एक माह के बाद बुजुर्ग का इकलौता बेटा बर्मा फ्रंट से लौटा तो वे लोग बहुत खुश हुए और उसने घर पर सबको बताया कि एक दिन वह दुश्मन की फौज से घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई, उसके सारे साथी मारे गए। लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बचा, मुझे पता नहीं।

रातभर वह जापानी फौज की गोलीबारी के बीच जिंदा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश सैनिक आए तो उसकी जान में जान आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा दंपति के घर रूके थे। भक्तों का मानना है कि यह बाबा ही थे जो सैनिक को बचा रहे थे।

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