4. गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है।
महात्मा, भाग 2 के पृष्ठ 278
5. मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है।
महात्मा, भाग 2 के पृष्ठ 311
6. ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे।
महात्मा, भाग 3 के पृष्ठ 234
7. यदि आप न्याय के लिए लड़ रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है।
माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, 1968, पृष्ठ 206
8. अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है।
महात्मा, भाग 2 के पृष्ठ 251
9. हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किंतु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं।
महात्मा, भाग 2 के पृष्ठ 227
10. जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूं तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है।
माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, 1968, पृष्ठ 302
11. जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है।
ट्रुथ इज गॉड, 1955 पृष्ठ 43
12. मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है।
द मैसेज ऑफ द गीता, 1959, पृष्ठ 4
13. मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है।
ट्रुथ इज गॉड, 1999 पृष्ठ 45
14. यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी।
महात्मा, भाग 2 के पृष्ठ 182
15. जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता।
महात्मा, भाग 5 के पृष्ठ 16
16. ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है।
ट्रुथ इज गॉड, 1955 पृष्ठ 24