इसकी तिथि न हिंदी कैलेंडर को फॉलो करती है और न अंग्रेजी कैलेंडर को बल्कि इसका निर्धारण ग्रहों की चाल के आधार पर होता है। इसके कुछ खास नियम भी हैं तो आइये जानते हैं कब लगता है और कुंभ आयोजन के नियम क्या हैं।
इस आकाशीय घड़ी से होता है कुंभ का निर्धारण
Kumbh mela lagane ka niyam: भारतीय ज्योतिष के अनुसार आकाश में शनि, बृहस्पति, सूर्य, मंगल और चंद्रमा आदि ग्रह पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए घड़ी के समान काम करते हैं। प्राचीन काल से ही भारत में सारे कामकाज इन ग्रहों की चाल के आंकलन से ही किए जाते रहे हैं। इसी कारण हिंदू धर्म के प्रमुख आयोजन के समय निर्धारण में ग्रहों की चाल का ध्यान दिया जाता है।ग्रह नक्षत्रं शोध संस्थान प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार प्राचीन काल से ही भारत में ग्रह और नक्षत्र हमारे लिए घड़ी का काम करते रहे हैं। यदि एक साल की गणना करनी हो तो बृहस्पति ग्रह के मूवमेंट पर ध्यान दिया जाता है, एक माह संबंधित गणना के लिए सूर्य की चाल, ढाई साल की गणना में शनि का ध्यान दिया जाता है, डेढ़ महीने के आंकलन के लिए मंगल को आधार बनाया जाता है और ढाई दिन के लिए चंद्रमा की चाल देखी जाती है।
जानें कब लगता है कुंभ मेला
ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार सागर मंथन के दौरान निकले अमृत को पाने की छीना झपटी में भारत के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत की बूंदें गिर गईं थीं। इन्हीं स्थानों पर हर 12 साल बाद क्रमशः विशेष ग्रह नक्षत्र स्थितियों पर कुंभ मेला लगता है। हालांकि प्रयागराज में हर छठें साल अर्ध कुंभ भी लगता है। इन सभी स्थानों पर कुंभ के समय के निर्धारण का खास नियम और ग्रह कैलेंडर होता है जो ग्रहों की चाल विशेष रूप से बृहस्पति की चाल पर आधारित है।
कुंभ मेला लगने का नियम (rules of Kumbh)
jupiter movement: ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार कुंभ का शाब्दिक अर्थ है घड़ा, सुराही या बर्तन जबकि मेला शब्द का अर्थ है किसी स्थान पर मिलना, साथ चलना, सभा या विशेष सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। इस तरह कुंभ मेले का अर्थ अमरत्व और आध्यात्मिक मेले के रूप में लिया जाता है। आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार कुंभ मेले के लगने का निर्धारण बृहस्पति ग्रह की चाल के आधार पर और 12 साल में बृहस्पति के राशि चक्र को पूरा करने पर होता है। इसके खास नियम हैं, आइये जानते हैं..
प्रयागराज और अन्य जगहों पर कुंभ मेला का नियम
आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार जब बृहस्पति भ्रमण करते हुए वृषभ राशि में आते हैं और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करते हैं हैं तब प्रयागराज में संगम तट पर कुंभ मेला लगता है। यह घटना दुर्लभ है, क्योंकि यह 12 साल बाद होती है। हरिद्वारः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति के कुंभ राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होने पर हरिद्वार में गंगा किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है।
नासिकः तीसरा बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में आने पर नासिक में गोदावरी के किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है।
उज्जैनः चौथा कुंभ उज्जैन में तब लगता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह कुंभ मेला उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर लगता है।
अर्धकुंभः इसके अलावा प्रयागराज में जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्यचंद्र मकर राशि में अमावस्या के दिन प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर अर्ध कुंभ लगता है। इस तिथि को कुंभ स्नान योग कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन संगम स्नान से आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति सहजता से हो जाती है।