इधर, पार्थिव शिवलिंग पूजा के बाद लौटने में देवी पार्वती को देर हो गई। पार्वती जी नदी से लौटकर भगवान शिव के सामने पहुंची तो वहां देवर्षि नारद भी उपस्थित थे। भगवान शिव ने देवी पार्वती से उनके देरी से लौटने का कारण पूछा तो माता पार्वती ने कहा कि, नदी के तट पर मुझे मेरे भाई-भौजाई आदि कुटुम्बीजन मिल गए थे। वह मुझसे दूध-भात ग्रहण करने और विश्राम करने का हठ करने लगे। उनका आग्रह स्वीकार कर में वही प्रसाद ग्रहण करके आ रही हूं।
इस पर भगवान शिव भी लीला में शामिल हो गए। उन्होंने कहा कि, “मुझे भी दूध-भात का भोग ग्रहण करना है।” और शिव जी नदी के तट की ओर चल दिए। माता पार्वती मन ही मन भगवान भोलेनाथ शिव जी से प्रार्थना करने लगीं, “हे भोलेनाथ! यदि मैं आपकी अनन्य पतिव्रता हूं तो इस समय मेरी लाज रख लीजिए नाथ!, मेरे वचनों की रक्षा कीजिए प्रभु!”
माता पार्वती मन ही मन इस अंतर्द्वंद्व में उलझी भगवान शिव के पीछे-पीछे चल ही रही थीं कि, नदी के तट पर उन्हें विशाल और भव्य महल दिखाई दिया। महल में प्रवेश करने पर माता पार्वती के भाई- भौजाई आदि सभी कुटुम्ब सहित वहां उपस्थित थे। उन सभी ने भगवान शिव का भव्य रूप से स्वागत-सत्कार किया और उनकी स्तुति की। उनकी आवभगत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दो दिन तक उस महल में निवास किया। तब तीसरे दिन माता पार्वती शिव जी से प्रस्थान करने के लिए आग्रह करने लगीं। लेकिन भगवान शिव अधिक समय उस महल में निवास करना चाहते थे। अतः माता पार्वती ने अकेले ही वहां से प्रस्थान कर दिया। अन्ततः शिव जी भी देवर्षि नारद सहित पार्वती जी के पीछे-पीछे चल दिए।
चलते-चलते बहुत दूर आ जाने पर भगवान शिव को अचानक याद आया कि वह अपनी माला तो पार्वती जी के मायके में ही भूल आए हैं। यह सुनकर माता पार्वती जी तुरंत ही माला लेने के लिए जाने लगीं लेकिन भगवान शिव ने उन्हें रोकते हुये देवर्षि नारद जी को माला लाने के लिए भेजा। नारद जी ने नदी के तट पर पहुंचने पर देखा कि वहां पर तो कोई महल ही नहीं है। लेकिन उस स्थान पर एक सघन वन है, जिसमें अनेक हिंसक पशु, जीव-जंतु आदि विचरण कर रहे हैं। यह भीषण दृश्य देखकर देवर्षि नारद अचरज में पड़ गए और विचार करने लगे कि कहीं वह किसी अन्य स्थान पर तो नहीं आ गए। लेकिन भगवान शिव की लीला से उस स्थान पर भीषण बिजली कौंधी, जिसके देवर्षि नारद को एक वृक्ष पर भगवान शिव की माला लटकी हुई दिखाई दी। देवर्षि उस माला को लेकर भगवान शिव के सामने लौटे और आश्चर्य से शिवजी को वृत्तांत सुनाया।
देवर्षि नारद ने भगवान शिव से कहा, “हे भोलेनाथ! यह आपकी कैसी विचित्र लीला है? उस स्थान पर न तो वह भव्य महल है और ना ही माता पार्वती के कुटुम्बीजन। वह स्थान तो हिंसक पशुओं से युक्त एक घनघोर वन में परिवर्तित हो चुका है। हे लीलाधर! कृपया मेरे मेरे आश्चर्य का निवारण करें।” नारद जी को आश्चर्यचकित देख भगवान शिव धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए बोले, “हे देवर्षि! यह मेरा कार्य नहीं है, यह तो देवी पार्वती की मायावी लीला है, जिसने आपको अचरज में डाल दिया है। देवी पार्वती अपनी पार्थिव शिवलिंग पूजन को गोपनीय रखना चाहती थीं, इसीलिये उन्होंने सत्य छुपाया।” भगवान शिव के वचनों को सुनकर माता पार्वती ने कहा, “हे स्वामी! मैं किस योग्य हूँ? यह तो आपकी ही कृपादृष्टि का ही फल है।
भगवान शिव और देवी पार्वती की लीला को देखकर देवर्षि नारद बोले, “हे माते! जगत् जननी! आप पतिव्रताओं में सर्वोच्च हैं। आपके पतिव्रत के प्रभाव से ही यह लीला संपन्न हुई है। सांसारिक स्त्रियों को आपके स्मरण मात्र से अटल सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आपसे ही समस्त सिद्धियां उत्पन्न होती हैं तथा आप में ही विलीन हो जाती हैं। अतः आपके लिए यह लीला रचना क्षण भर का ही कार्य है। हे मां! गुप्त पूजन साधारण पूजन से अधिक फलदायी और प्रभावशाली होता है। अतः मैं यह आशीष प्रदान करता हूं कि जो भी स्त्रियां गुप्त रूप से पति की पूजा अर्चना करके उनके निमित्त मंगलकामना करेंगी, भगवान शिव की कृपा से उन्हें दीर्घायु और उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी। वहीं जो कन्याएं यह व्रत रहेंगे उन्हें अच्छा पति मिलेगा।