scriptDurga Stuti: भगवान कृष्ण की गाई संपूर्ण दुर्गा स्तुति, नवरात्रि में गाने से पूजा हो जाती है सफल, कट जाते हैं सारे कष्ट | Durga Stuti Navratri All troubles go away by singing praises of Maa Durga read Complete Durga Stuti sung by Lord Krishna | Patrika News
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Durga Stuti: भगवान कृष्ण की गाई संपूर्ण दुर्गा स्तुति, नवरात्रि में गाने से पूजा हो जाती है सफल, कट जाते हैं सारे कष्ट

Durga Stuti: नवरात्रि दुर्गा पूजा का विशेष उत्सव है। इसमें मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां दुर्गा का आशीर्वाद भक्तों के सभी दुख-दर्द दूर कर देता है। इसलिए साधारण व्यक्ति से देवता तक मां का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी आराधना करते है। दुर्गा स्तुति मां दुर्गा की आराधना का हिस्सा है। आइये जानते हैं मां दुर्गा की स्तुति, जिससे माता शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं। नवरात्रि में इस दुर्गा स्तुति को गाने से पूजा सफल हो जाती है। आइये जानते हैं भगवान कृष्ण की गाई संपूर्ण मां दुर्गा स्तुति..

Apr 10, 2024 / 06:42 pm

Pravin Pandey

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दुर्गा स्तुति नवरात्रि


दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा को सिंह पर सवार बताया गया है। माता की आठ भुजाएं हैं, जिनमें शस्त्र के साथ-साथ शास्त्र भी हैं। सप्तशती के अनुसार मां दुर्गा ने धरती को बचाने के लिए महिषासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। ग्रन्थों में इन्हें अर्धनारीश्वर शिव की पत्नी दुर्गा या शिवा के रूप में बताया गया है। इन देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। इन्हें मां गौरी भी कहते हैं। यहाँ गौरी का अर्थ है शांत, सुंदर और गौर (गोरा) रूप वाली है। वहीं इसके विपरीत उनका सबसे भयानक रूप काली का है, अर्थात काला रूप।

हिंदू धर्म ग्रंथों में मां दुर्गा को ही परमशक्ति बताया गया है। इसलिए इन्हें सर्वोच्च दैवीय शक्ति के रूप में पूजते हैं, शाक्त संप्रदाय तो ईश्वर को देवी के रूप में ही पूजता है। उपनिषद में देवी दुर्गा को हिमालय की पुत्री कहा गया है, जबकि पुराण में दुर्गा को आदि-शक्ति माना गया है। दरअसल, सभी ग्रंथ कहीं न कहीं मां दुर्गा को शिव की पत्नी आदिशक्ति के रूप में ही पूजते हैं। शिव की इस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी और विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मां दुर्गा की स्तुति भगवान श्री कृष्ण ने भी की थी। इसमें भगवान कृष्ण ने मां दुर्गा के लिए कहा है कि हे दुर्गा, तुम ही विश्वजननी हो, तुम ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन जाती हो। यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो और प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो। आइये जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण की ओर से गाई जाने वाली मां दुर्गा की स्तुति
त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।।

त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥

देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥

महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥

तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वंयया सम्मोहितं जगत्। ययामुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वांछिता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥

कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥

गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

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