मान्यता है कि इससे भगवान शिव आसानी से प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, उसका सब कष्ट दूर करते हैं। भक्त के जीवन में सुख समृद्धि, शांति तरक्की मिलती है। साथ ही पारलौकिक उन्नति भी होती है। यह कांवड़ यात्रा 4 प्रकार की होती है, लेकिन सबसे कठिन डाक कांवड़ यात्रा मानी जाती है, जिसके कांवड़िये को डाक बम कहा जाता है। आइये जानते हैं कितने प्रकार की होती कांवड़ यात्रा है और क्या हैं कांवड़ यात्रा के नियम।
सामान्य कांवड़ यात्रा
सावन और फाल्गुन में भगवा वस्त्र में कांधे पर कांवड़ धरे बोल बम बोलते जल लेने जा रहे शिव भक्तों को देखा होगा। अक्सर ये रूक रूक कर यात्रा करते हैं, इस कांवड़ यात्रा को सामान्य कांवड़ यात्रा कहा जाता है। सामान्य कांवड़िये अपनी यात्रा के दौरान जहां चाहें रूककर आराम कर सकते हैं। यहा कारण है कि यात्रा के रास्ते में लगे पंडालों में ये रूकते हैं और आराम के बाद आगे का सफर शुरू करते हैं। ये भी पढ़ेंः Kanwar Yatra Sawan 2024: कांवड़ यात्रा से मिलती है शिवजी की कृपा, जानें कौन था पहला कांवड़िया और साल में दो बार होने वाली कांवड़ यात्रा का इतिहास
डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा में से एक है। डाक कांवड़ यात्रा में यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बिना रूके चलते रहते हैं। इसे प्रायः 24 घंटे में पूरा करना होता है। इनके लिए मंदिरों में विशेष इंतजाम किए जाते हैं। उनके लिए लोग रास्ता बना देते हैं, ताकि वे शिवलिंग तक बिना रूके चलते रहें। डाक कांवड़ यात्रा कर रहे कांवड़ियों को ही डाक बम कहा जाता है।यह डाक कांवड़ यात्रा प्रायः कुछ लोग टोली बनाकर किसी वाहन से पूरी करते हैं। इस यात्रा में शामिल लोगों में से एक या दो सदस्य, गंगा जल को हाथ में लेकर लगातार बिना रूके बांस की कांवड़ के साथ दौड़ते रहते हैं। इन सदस्यों के थक जाने के बाद दूसरा सदस्य दौड़ने के लिए आ जाता है और पहला सदस्य अपनी टोली के पास वाहन में बैठ जाता है।
खड़ी कांवड़
इसमें भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई न कोई सहयोगी साथ चलता है। जब कांवड़िया आराम करता है तो साथी कांवड़ अपने कंधे पर रखकर खड़ी अवस्था में चलने के अंदाज में कांवड़ को हिलाता रहता है। ये भी पढ़ेंः Savan Somvar Vrat Niyam: सावन सोमवार व्रत में जरूर करें ये काम, भूलकर भी न करें ये गलती
दांडी कांवड़
इसमें भक्त नदी तट से शिवधाम तक दंड देते हुए पहुंचते हैं और कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से मापते हुए पूरी करते हैं। ये बहुत कठिन कांवड़ यात्रा होती है और इसमें महीनों का समय लग जाता है।भक्त कहां से लेते हैं जल
प्रायः पश्चिम उत्तर प्रदेश और आसपास के शिव भक्त हरिद्वार जल लेने जाते हैं, जो इसे मेरठ के पुरा महादेव या अपने घरों के आसपास के प्रसिद्ध शिवालयों में चढ़ाते हैं। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार, झारखंड के भक्त सुल्तान गंज से जल लेकर 108 किलोमीटर दूर बाबा वैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल के भक्त वहीं के शिव मंदिरों में जल अर्पित करते हैं। बता दें कि 22 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है और पहले दिन ही सोमवार है और इसी दिन से कांवड़ यात्रा 2024 भी शुरू होगी। सड़कें और गलियां शिवमय हो जाएंगी। ये भी पढ़ेंः Sawan 2024: सावन में शिवलिंग पूजा से बनने लगते हैं बिगड़े काम, जानिए सोमवार व्रत पूजा विधि और मंत्र