विचार मंथन : जिसकी भावना श्रेष्ठ है उसका कर्मकाण्ड अशुद्ध होने पर भी वह ईश्वर को प्राप्त कर सकता है- चैतन्य महाप्रभु
मैं निर्भीक साहसी लोगों को चाहता हूं
मृत्यु के कीड़े उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। तुम्हें इनका परित्याग करना होगा। मैं निर्भीक साहसी लोगों को चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि लोगों में ताजा खून हो, स्नायुओं में तेजी हो, पेशियां लोहे की तरह सख्त हों। मस्तिष्क को बेकार और कमजोर बनाने वाले भावों की आवश्यकता नहीं है, इन्हें छोड़ दो। सब तरह के गुप्त भावों की ओर दृष्टि डालना छोड़ दो। धर्म में कोई गुप्त भाव नहीं। ऋद्धि-सिद्धियों की अलौकिकता के पीछे पड़ना कुसंस्कार और दुर्बलता के चिन्ह हैं। वे अवनति और मृत्यु के चिन्ह हैं। इसलिए उनसे सदा सावधान रहो।
कुसंस्कार पूर्ण होना अवनति और मृत्यु का कारण है
तेजस्वी बनो और खुद अपने पैरों पर खड़े हों मैं संन्यासी हूं और गत चौदह वर्षों से पैदल ही चारों तरफ घूमता फिरता हूं। मैं आपसे सच-सच कहता हूं कि इस तरह के गुप्त चमत्कार कहीं पर भी नहीं है। इन सब बुरे संस्कारों के पीछे कभी न दौड़ो। तुम्हारे और तुम्हारी संपूर्ण जाति के लिए इससे तो नास्तिक होना अच्छा है किंतु इस तरह कुसंस्कार पूर्ण होना अवनति और मृत्यु का कारण है।
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