अपने ही एक धर्म को सभी देशों और सभी दलों में प्रधान बना देने का प्रयत्न ऐसे ही लोगों में देखा जाता है जिन्हें साँप्रदायिकता का व्यसन जाता है। यह कहना उनको बुरा मालूम होता है। प्रेम के वितरण करने में ईश्वर उदार है तथा मनुष्यों के साथ आदान-प्रदान करने के उसके साधन एक ऐसी गली में परिमित नहीं हैं जो इतिहास के एक संकीर्ण स्थान पर जाकर अकस्मात् समाप्त हो जाती है।
यदि आप सचमुच सत्य के प्रेमी हैं, तो उसके समस्त असीम सौंदर्य और महत्व के साथ पूर्ण रूप में उसे खोजने का साहस कीजिए। किंतु रूढ़ियों की पत्थर की दीवालों के भीतर कंजूसों के समान एकान्त स्थान में उसके (सत्य के) व्यर्थ के संकेत चिन्हों का संग्रह करके ही संतोष न कर लीजिए। महात्माओं की आध्यात्मिक उच्चता के कारण जोकि उन सबसे समान रूप से पाई जाती है, हमें विनम्रतापूर्ण सादगी के साथ उनका आदर करना चाहिए।
यह आध्यात्मिक उच्चता उन में उस समय देखी जाती है जब वे अपनी विश्वजनीन उच्च विचारों के साथ मनुष्य की आत्मा को स्वयं उसके व्यक्तिगत उसकी जाति और उसके धर्म के अहं भाव के बन्धन से छुड़ाने के लिए एकत्रित होते हैं। किंतु परंपराओं की एक नीची भूमि में जहां धर्म एक दूसरे के दासों और अन्धविश्वासों को चुनौती देकर ललकारते हैं और उनका खण्डन करते हैं वहाँ पर एक बुद्धिमान मनुष्य निश्चय ही संदेह ओर आश्चर्य के साथ उनके पास से चला जायेगा।
विचार मंथन : सफलता की कुञ्जी एक मात्र समय और संयम है- आचार्य श्रीराम शर्मा
मेरा मतलब इस बात का समर्थन करने का नहीं है कि समस्त मानव जाति के लिए कोई एक ही प्रकार का प्रार्थनागृह रखा जाय अथवा कोई एक ऐसा विश्वजनीन नमूना रखा जाए जिसका अनुकरण सभी पूजा के और सद्भावना के कार्यों के द्वारा किया जाय। केवल सत्य के वास्तविक रूप को जानों और उस पर चलने का साहस भी दृड़ता पूर्वक करते रहो।
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