धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : निम्न नहीं उच्च कोटि का स्वार्थ अपनाएं- आचार्य श्रीराम शर्मा

विचार मंथन : निम्न नहीं उच्च कोटि का स्वार्थ अपनाएं- आचार्य श्रीराम शर्मा

Jul 09, 2019 / 06:03 pm

Shyam

विचार मंथन : निम्न नहीं उच्च कोटि का स्वार्थ अपनाएं- आचार्य श्रीराम शर्मा

स्वार्थ बुरा नहीं है

लोगों की दृष्टि में स्वार्थ बुरा समझा जाता है, परन्तु स्वार्थ बुरा नहीं है। स्वार्थ का तात्पर्य है ‘अपना लाभ-अपना भला-अपना हित करना।’ दूसरे शब्दों में कहें तो यह हो सकता है कि ‘अपना हित करने की भावना से प्रेरित होकर किसी प्रकार का शारीरिक अथवा मानसिक श्रम करना।’ यदि हम शब्दकोष को उठाकर देखें तो हमें विदित होगा कि उसमें भी स्वार्थ अभिप्राय उपरोक्त ही बताया गया है।

 

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अपना भी भला करें

हम स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें, हमारा जीवन सुख-शान्तिमय व्यतीत हो-ऐसा कौन नहीं चाहता? यह भावना हमारे भले की, हित की है और अपना भला या हित करना कोई पाप नहीं है, बल्कि यह कहा जाए कि ‘हमारा धर्म है’ तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इस बात का स्पष्टीकरण कर दिया है-’उद्धरेद त्मनात्मानं नात्मान मवसादयेत्।’ अर्थात् ‘मनुष्य को चाहिए कि वह अपने द्वारा अपना उद्धार (भला) करे।’

 

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सिकन्दर ने स्वार्थ का दुरुपयोग किया

स्वार्थ का दुरुपयोग करने से अनेकों प्रकार के रोग मनुष्य को घेरे रहते हैं और मनुष्य जीवन भर बेचैनी का अनुभव करता हुआ दुर्गति को प्राप्त होता है। इतिहास के क्षेत्र में देखिए, सिकन्दर ने स्वार्थ का दुरुपयोग किया और छोटे-बड़े सभी राज्यों को पराजित कर सम्राट बन बैठा। इस स्वार्थ में सिकन्दर को क्या मिला? हत्या, शाप, परपीड़न और पाप! इसी पाप ने अन्त में सन्ताप का रूप धारण कर उसे दुर्गति के हवाले कर दिया और सिकन्दर के हाथ कुछ न आया। उसकी धन-दौलत माल-असबाब और उसकी सेना उसे निर्दयी काल के पंजे से न छुड़ा सकी। इसीलिए कहा है- सिकन्दर जब गया दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे।

 

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हमारी शान्ति कहां निहित है?

यदि हम सचमुच अपना हित साधन करना चाहते हैं तो हमें अपना दृष्टिकोण परिवर्तित करना होगा, निम्न-कोटि के स्वार्थ से ऊंचे उठकर उच्च कोटि का स्वार्थ अपनाना होगा। चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते, तात्पर्य यह है कि प्रत्येक कार्य करते समय हमें यही ध्यान रखना होगा कि हमारा हित, हमारा भला, हमारा स्वार्थ, हमारा सुख, हमारी शान्ति कहां निहित है? हमें अपने भीतर से उत्तर-मिलेगा, अन्य का भला करने में! इसलिए हर कार्य हमें अपनी भलाई करने के लिये ही करना चाहिए और प्रत्येक में हमारे स्वार्थ की छाप लगा देना चाहिए। हम जिधर दृष्टि फेरें, बस हमें अपना स्वार्थ ही स्वार्थ नजर आए।

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