पुराणों के अनुसार कलश भगवान विष्णु के स्वरूप होते हैं। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। इसके लिए पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध करते हैं और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित करते हैं। इसके साथ ही कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाते हैं और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा रखते हैं।
मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि में माता की श्रद्धा पूर्वक पूजा कर उपवास रखने से मनोवांछित फल की मिलते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा पूर्वक भोजन कराया जाता है और दक्षिणा आदि दिया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन करने के बाद उपवास खोलते हैं। आषाढ़ और माघ के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि को भी माता की पूजा की जाती है। लेकिन इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं और प्रायः तांत्रिक इसमें साधना करते हैं। तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व होता है।