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Kalash Sthapana: देवी से पहले क्यों करते हैं कलश की पूजा, जानें नवरात्रि पूजा की जरूरी बातें

Chaitra Navratri Kalash Sthapana 2024 चैत्र नवरात्रि 2024 यानी दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू होने वाला है। इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग कलश स्थापना और उसकी पूजा है। आइये जानते हैं नवरात्रि में देवी से पहले क्यों करते हैं कलश की पूजा, साथ ही नवरात्रि पूजा की अन्य जरूरी बातें…

भोपालJul 06, 2024 / 11:04 am

Pravin Pandey

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नवरात्रि में कलश स्थापना क्यों करते हैं और क्या हैं नियम


Navratri Kalash Sthapana 2024 नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है, इसके बाद नौ दिनों तक रोज कलश की पूजा के बाद मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। वहीं गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या की पूजा की जाती है। लेकिन आप में से कई के मन में ये सवाल आ सकता है कि हर पूजा में सबसे पहले गणेशजी की पूजा की जाती है, लेकिन नवरात्रि में आखिर क्यों कलश स्थापना और उसकी पूजा करते हैं तो आइये इसका जवाब जानते हैं,

पुराणों के अनुसार कलश भगवान विष्णु के स्वरूप होते हैं। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। इसके लिए पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध करते हैं और फिर पूजा में सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित करते हैं। इसके साथ ही कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाते हैं और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा रखते हैं।
फिर कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाते हैं और कलश पर रखे जाने वाले कसोरे में शुद्ध मिट्टी में जौ बोते हैं (जौ बोने की विधि धन-धान्य की देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने के लिए अपनाई जाती है।)। इसके बाद मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है और मां का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
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मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि में माता की श्रद्धा पूर्वक पूजा कर उपवास रखने से मनोवांछित फल की मिलते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा पूर्वक भोजन कराया जाता है और दक्षिणा आदि दिया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन करने के बाद उपवास खोलते हैं। आषाढ़ और माघ के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि को भी माता की पूजा की जाती है। लेकिन इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं और प्रायः तांत्रिक इसमें साधना करते हैं। तंत्र साधना और वशीकरण आदि में विश्वास रखने या उसे इस्तेमाल करने वालों के लिए गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व होता है।

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