इसका मतलब है कि अब होम लोन ( Home Loan ) के लिए बिल्डर मकान तैयार होने तक आपके ब्याज का वहन नहीं करेगा। NHB के इस निर्देश के बाद अब बिल्डर्स के लिए उन ग्राहकों को घर बेचना आसान नहीं होगा जो आम तौर पर 5:95 या 10:90 के अनुपात में डाउन पेमेंट लेकर घर खरीदते थे।
5-10 फीसदी के डाउनपेमेंट पर खरीद सकते थे घर
अभी तक इस स्कीम के तहत घर खरीदार 5 से 10 फीसदी का डाउनपेमेंट करते थे, बाकी 90-95 फीसदी की रकम बैंक से लोन के रूप में जमा किया जाता था। इस लोन पर लगने वाला ब्याज जमा करना बिल्डर की जिम्मेदारी होती थी। इस ब्याज का भुगतान बिल्डर तब तक करता था, जब तक कंस्ट्रक्शन का काम पूरा नहीं हो जाता था।
पहले भी जारी हो चुका है ऐसा निर्देश
इंटरेस्ट सबवेंशन स्कीम ( Interest Subvention Scheme ) से घर खरीदारों के लिए सहूलियत होने के साथ-साथ एक तय अवधि के लिए उन्हें ब्याज देने से भी छुटकारा मिलता था। साथ ही बिल्डर्स के लिए भी घर बेचने से लेकर प्रोजेक्ट फंडिग जुटाने में मदद मिलती थी। हालांकि, नया दिशानिर्देश इस ऑफर को पूरी तरह से बंद तो नहीं करेगा, लेकिन इससे सेल्स और फाइनेंसिंग पर जरूर असर पड़ेगा। बता दें कि साल 2013 में भी नेशनल हाउसिंग बैंक ने ऐसा ही निर्देश जारी किया था।
फ्रॉड रोकने के लिए उठाया गया कदम
एनएचबी ने अपने निर्देश में इस तरह के स्कीम के तहत होने वाले कई तरह के फ्रॉड के बारे में भी जिक्र किया है। इस फ्रॉड को आधार बनाकर एनएचबी ने यह निर्देश जारी किया। हालांकि, किस तरह के फ्रॉड हो सकते हैं, ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई है। निर्देश में कहा गया है कि होम फाइनेंस कंपनियां डेवलपर को लोन पेमेंट करने से पहले कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान को चुनें।
क्यों बिल्डर्स लाये थे ऑफर्स
गौरतलब है कि इस निर्देश के बाद कई तरह के सबवेन्शन स्कीम पर भी सवालिया निशान खड़े हो गये हैं। इसके बाद अब घर खरीदार लिक्विडिटी की कमी की वजह से किसी भी तरह के प्रोजेक्ट को खरीदने से बचेंगे। वहीं, दूसरी तरफ इस तहत कम ब्याज पर प्रोजेक्ट फंड जुटाया जाता था। होमबायर्स के रिटेल लोन और डेवलपर्स लोन में करीब 200-300 आधार अंकों का अंतर होता है। यह कारण था कि बिल्डर्स इस तरह के ऑफर्स लेकर आये थे।
क्या है जानकारों का कहना
एनएचबी के इस फरमान के बाद रियल एस्टेट जानकारों का कहना है कि यदि फ्रॉड रोकने के लिए इस तरह के निर्देश जारी किये गये हैं तो यह स्वागत योग्य है, लेकिन इस वजह से प्रोजेक्ट फंडिंग में भरी कमी होगी। इस स्कीम में होने वाले फ्रॉड को जरूर रोका जाना चहिए, लेकिन प्रोजेक्ट फंडिंग के लिए दूसरे विकल्प को भी तलाशना जरूरी है। कई बिल्डर्स का मानना है कि बाजार में पहले से ही लिक्विडिटी की कमी है और इस कदम से इसके बढऩे के आसार हैं।