दिवाली में सजाया जाता है मंदिर रतलाम के माणकचौक में बने श्री महालक्ष्मी के इस मंदिर को दिवाली के समय खूब सजाया जाता है। बताया जाता है कि इस मंदिर में लगे आभूषणों की कीमत 100 करोड़ रुपए से अधिक होती है। यहां कि सजावट को देखकर लगता है कि इतना सारा धन मंदिर को दान में मिलता है, हकीकत यह है कि धन मंदिर को दान में नहीं बल्कि सजावट के लिए श्रद्धालु देते हैं, जो उन्हें बाद में वापस कर दिया जाता है।
प्रसाद में मिलती कुबेर की पोटली दिवाली में बाद जो भी भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए जाता है उसे प्रसाद के रुप में पूर्व में दिए हुए आभूषण दिए जाते हैं। साथ ही जिसने नकदी दी है, उसको नकदी भी दी जाती है। इस प्रसाद को लेने के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पर आते हैं। भक्तों का कहना है कि वे इस प्रसाद को शगुन मानकर कभी भी खर्च नहीं करते हैं बल्कि संभालकर रखते हैं। इतना ही नहीं, साथ में कुबेर की पोटली मिलती है जो सभी भक्तों को दी जाती है। इस पोटली को लेने के लिए लंबी-लंबी लाइन लगती है।
धनतेरस के दिन खुलते हैं कपाट श्री महालक्ष्मी के इस मंदिर के कपाट वैसे तो पूरे साल खुले रहते है, लेकिन खास सजावट के बाद कपाट ब्रहम मुहूर्त में खुलते हैं और ये शुभ दिन होता है धनतेरस का। धनतेरस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में इस मंदिर के कपाट को खोल दिया जाता है। इस दिन कपाट खुलने के बाद दिवाली के बाद तक ये तक कपाट खुले रहते हैं। पांच दिन तक इस, मंदिर में दिवाली के पर्व का धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी अपने आभूषणों को महालक्ष्मी के श्रृंगार के लिए लाता है उसके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। मंदिर में महिलाओं के प्रसाद के रुप में श्रीयंत्र, सिक्का, कौड़ियां, अक्षत, कंकूयुक्त कुबेर पोटली दी जाती है, जिन्हें घर में रखना शुभ माना जाता है।
कहीं नहीं है ऐसा मंदिर कहा जाता है कि पूरे भारत देश में ऐसा कोई भी मंदिर नहीं है जहां पर सोने-चांदी के आभूषणों, हीरों-जवाहरातों व नकद राशि से श्री महालक्ष्मी का श्रृंगार किया जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि आज तक भक्तों के द्वारा लाए गए करोड़ों के आभूषण इधर से उधर नहीं हुए हैं। एक समय के बाद भक्तों को ये वापस कर दिए जाते हैं।