सशक्तिकरण की संगीता : अपनों ने साथ छोड़ा तो संघर्ष को बनाया साथी और बनाई नई पहचान
Ratlam News : सशक्तिकरण की संगीता बोलीं- अपनों ने साथ छोड़ा तो संघर्ष को बनाया साथी। महिलाओं को दिया अहम संदेश, ‘खुदखुशी करने की बजाय, वो करें जिससे खुशी मिल जाए।’
Ratlam News : इनका नाम संगीता सिसौदिया है। करीब चार साल पहले कोरोना ने इनके पति को छीन लिया था! परिवार के नाम पर वैसे तो कुछ रिश्तेदार हैं, लेकिन कुछ समय बाद सभी अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए। साथ बची केवल एक परेशानी कि घर कैसे चलाया जाए? जब भी कुछ नई कोशिश की डर और नाकामी ने कदम-कदम पर घबराहट बढ़ा दी! लेकिन, एक मित्र की सलाह पर जैसे ही ई-रिक्शा लिया, चलते चक्कों के साथ जिंदगी भी चलने लगी!
साहस की यह कहानी जब आगे बढ़ती है तो कुछ नए किरदारों को गढ़ती है! एक किरदार वह था, जो हार रहा था, एक किरदार यह है जब संघर्ष कर रहा है! संगीता कहती हैं, “जो लोग जीवन में हारकर खुदखुशी की सोचते हैं, उनसे कहना चाहती हूं, मौत की बजाय वह करें, जिससे खुशी मिलती है! थोड़ी मेहनत, थोड़ा संघर्ष, यदि थोड़ी ईमानदारी साथ हो, सफलता खुद पता पूछते हुए आती है!’
रतलाम की पहली महिला ई-रिक्शा चालक हैं संगीता
80 फीट रोड की एक कॉलोनी में रहने वाली संगीता रतलाम की पहली ई-रिक्शा चालक हैं! पति की मृत्यु के बाद बच्चों को पालने के लिए कई काम किए। टिफिन सेंटर चलाया, कपडे़ की दुकान डाली, पुड़ी-सब्जी भी बेची, लेकिन अंदर से खुशी नहीं मिली! ऐसा भी नहीं था कि कमाई नहीं हो रही थी या घर चलाने में कोई परेशानी थी, लेकिन मन में संतोष नहीं था!
एक दोस्त ने सलाह दी जब स्कूटी चला सकती हो, तो ई-रिक्शा क्यों नहीं? सच यह भी है कि पहली बार ये सुनकर थोड़ा अजीब लगा, क्योंकि इसके पहले बसंती को धन्नो दौड़ाते हुए फिल्म में ही देखा था, लेकिन बदलते दौर में ई-रिक्शा चलाई जाए, यह प्रस्ताव ज्यादा बेहतर लगा!
अब लगता सही निर्णय लिया!
मित्र की सलाह पर रिक्शा चलाने का लाइसेंस बनवाया व इसको चलाने का अभ्यास किया। जब लगा कि अब शहर की सड़क पर भी इसे चला सकते हैं, तब खरीद ही लिया। अब तो तीन महीने हो गए हैं, जब लोग आश्चर्य से देखते हैं, खुश होकर शाबाशी देते हैं, तो खुशी के साथ हौसला भी बढ़ जाता है! महिला पुलिस कर्मचारी हो या अधिकारी, अब तो “वेरी गुड” बोलकर हिम्मत बढ़ाते हैं। यहां तक कि कई यात्रियों ने मोबाइल नंबर ले लिए, ताकि बहन-बेटियों को देर रात कहीं जाना/आना हो, तो भरोसे के साथ मुझे जिम्मेदारी सौंप दें!
जब संगीता से ये सवाल किया लोग थोडे़-से संघर्ष में जिंदगी की पतंग की डोर काट देते हैं, कभी हिम्मत कमजोर नहीं हुई? जवाब मिला, “मौत के बारे में ख्याल कुछ देर ही रहता है, बस पल दो पल! जैसे ही मन दूसरी ओर लगा लें, मन बदल जाता है! फिर हिम्मत के साथ, नया हौसला साथ ले आता है!”
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