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रतलाम

एक सूर्य एक चंद्र और एक थी लता

मालवा के इंदौर की धरा पर जन्मी भारत रत्न, स्वर कोकिला लता मंगेशकर का रविवार को निधन हो गया। उनका ना सिर्फ अपनी जन्म स्थली से जुड़ाव रहा, बल्कि वे मालवा के अहम शहरों देवास, रतलाम, उज्जैन से लेकर शाजापुर तक के लोगों की स्मृति में सीधे तौर पर शामिल है।

रतलामFeb 06, 2022 / 09:20 pm

Ashish Pathak

lata mangeshkar in ratlam

lata mangeshkar in ratlam

रतलाम/उज्जैन/देवास.


मालवा के इंदौर की धरा पर जन्मी भारत रत्न, स्वर कोकिला लता मंगेशकर का रविवार को निधन हो गया। उनका ना सिर्फ अपनी जन्म स्थली से जुड़ाव रहा, बल्कि वे मालवा के अहम शहरों देवास, रतलाम, उज्जैन से लेकर शाजापुर तक के लोगों की स्मृति में सीधे तौर पर शामिल है। देवास में लता दीदी ने उस्ताद अमानत अली खां साहब से शुरुआती दिनों में संगीत की तालीम हासिल की थी तो फिर मुंबई में भी वे उनके साथ लंबे समय तक जुड़ी रहीं। 1965 के दौर में अभिनेता दिलीप कुमार व वहिदा रहमान की फिल्म दिल दिया…दर्द लिया आईं थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान यूनिट रतलाम में थी। तब लता मंगेशकर भी साथ रहीं। इसके बाद कई बार उनका रतलाम में आना-जाना लगा रहा। वर्ष 2019 के दौरान जब लताजी अस्वस्थ्य हुई थीं तो उज्जैन के महाकाल मंदिर में कला प्रेमियों ने महाअनुष्ठान कर मंगल कामना की थी, ये स्मृतियां आज भी ताजा है। लताजी के निधन से कला जगत निराश है तो उनको आदर्श मानकर स्वर साधना करने वालों की आंखे नम। समूचा मालवांचल अपनी इस गौरव स्वर कोकिला को श्रद्धांजलि दे रहा हैं।
रतलाम के शर्मा परिवार से खास रिश्ता, इंदौर जाते समय रतलाम ठहरतीं थी लताजी


स्वर कोकिला लता मंगेशकर को हिंदी फिल्मो के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर अपनी फिल्म में हिरोइन के रुप में लेना चाहते थे। इसके लिए लताजी का स्टील फोटोग्रॉफी का काम रतलाम के गजानंद शर्मा को दिया गया था। शर्मा 50 के दशक से पृथ्वी थिएटर से जुड़े हुए थे। 1965 में पहली बार लताजी रतलाम आई थी। उनका रतलाम से संबंध वर्षो पुराना रहा है। शहर में माय डियर के नाम से वर्षो तक प्रसिद्ध रहे फोटोग्राफर गजानंद शर्मा के बेटे लगन शर्मा ने बताया कि लता मंगेशकर से पहली बार पिता की मुलाकात 1955 में तब के बांबे व आज के मुंबई में हुई थी। असल में पिता पृथ्वीराज कपूर से जुड़े हुए थे। तब लताजी से पहली मुलाकात हुई थी। लगन ने बताया 2 मई 1965 में पहली बार लताजी रतलाम आई थी। यह वो दौर था जब हिंदी फिल्मों के दिलीप कुमार व वहिदा रहमान की फिल्म दिल दिया… दर्द लिया आई थी। इसकी शूटिंग के सिलसिले में पूरी यूनिट रतलाम आई थी। तब लताजी भी साथ रही। लता, उषा व आशा में एक बहन के करीबी रिश्तेदार रेलवे कॉलोनी में रहते थे। इस वजह से लताजी का तीन बार रतलाम आना हुआ। तब वे जब रतलाम आती, स्टेशन रोड स्थित निवास पर आती थी। जब भी इंदौर या मांडू जाना होता था, तो रतलाम से ही जाना पड़ता था, तब भी वे घर आती थी।
अंतिम मुलाकात 1987 की शादी में


लगन शर्मा ने बताया उनकी लताजी से अंतिम सार्वजनिक मुलाकात पदमीनी कोल्हापुरी की 1987 में हुई शादी में हुई थी। तब पदमीनी कोल्हापुरी के विवाह की पूरी फोटोग्राफी उन्होंने ही की थी। यह बात कम को पता है कि लताजी रिश्ते में पदमीनी कोल्हापुरी की बुआ है। इनके भाई हदयनाथ मंगेशकर भी रतलाम आए थे। भाई गणेश उत्सव में 1997 में महाराष्ट्र समाज के आयोजन में जब रतलाम आए तब लगन शर्मा के घर पर आए थे। शर्मा का पूरे परिवार से संबंध है।
अमानत अली खां साहब से पहले देवास और फिर मुंबई में ली संगीत की तालीम


स्वर साम्राज्ञी लताजी का मां चामुंडा की नगरी देवास से भी गहरा नाता रहा। उन्होंने संगीत की तालीम देवास के संगीतज्ञ अमानत अली खां साहब से ली थी। शुरुआती तालीम अमानत अली खां साहब ने देवास में दी और इसके बाद मुंबई जाकर। इसके अलावा संगीतज्ञ पं. कुमार गंर्धव के कारण भी लताजी का देवास से नाता रहा। लताजी कुमार साहब का बहुत सम्मान करती थी। गायक व वायलिन वादक अनवर हुसैन ने बताया अमानत अली खां साहब संभवत: लताजी के दूसरे गुरु थे। लताजी के पिता दीनानाथ मंगेशकर उनके पहले गुरु थे। पिताजी के साथ लताजी बहुत छोटी उम्र में देवास आई थी। उस समय वे तांगे से आए थे। लताजी के पिता अकसर आना-जाना किया करते थे। शुरुआती तालीम अमानत अली खां साहब ने उन्हें देवास में ही दी। इसके बाद लताजी मुंबई चली गई तो बाद में अमानत साहब को भी मुंबई बुलाया और संगीत की तालीम हासिल की। उस्ताद रजब अली खां संगीत कल्याण समिति के अध्यक्ष मुनव्वर खान व सचिव आनंद गुप्ता ने बताया अमानत खां साहब ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखते थे। वे जमाल खां साहब के पुत्र व संगीत सम्राट रजब अली खां साहब के भतीजे थे। शुरुआत में देवास में रहने के बाद वे इंदौर और बाद में मुंबई गए। नसीरूद्दीन खां डागर उन्हें मुंबई ले गए थे जहां वे आमिर खान के साथ रहे। मुंबई में लताजी ने उनसे संगीत की तालीम हासिल की। अमानत खां साहब का 1948 में निधन होने के बाद 2012 में उनका स्मारक देवास में बनाया गया। उस समय लताजी ने पत्र लिखकर अपनी शुभकामनाएं भेजीं थी।
लिखा था कि ये मेरे लिए बहुत खुशी की बात है


समिति के अध्यक्ष मुनव्वर खां को संबोधित करते हुए लताजी ने पत्र में लिखा था कि अमानत अली खां साहब का स्मारक 50 साल बाद बन रहा है। ये मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। आपकी संगीत कल्याण समिति के 7 वर्षों के प्रयास के बाद मेरे गुरुजी का स्मारक हो रहा है। उसके लोकार्पण के समय पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। ये पत्र 31 दिसंबर 2012 को लिखा गया था।
हमने अपनी पहचान खो दी


शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली ने लताजी के निधन पर कहा कि मेरे पास कहने को शब्द नहीं है। विश्व में हमारी सबसे पहली पहचान आज हमने खो दी है। इतनी सुरीली आवाज तो अब पैदा होगी या नहीं, मुझे शंका है। उनकेकंठ से कभी भी बेसुरा स्वर नहीं निकला। वे इतनी सुरीली थी कि सुर की बात करें तो वे सुर का पैमाना हो गई। उन्होंने संगीत को भरपूर जीया। उनके गाए गाने अजर-अमर हैं। एक बार मराठी लेखक पीएल देशपांडे ने कहा था कि दुनिया में भगवान है या नहीं मैं नहीं जानता लेकिन यह कह सकता हूं कि सूर्य है, चंद्र है और लता का स्वर है।
शास्त्रीय संगीत में राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली गायिका कविता पुणतांबेकर


लताजी के रूप में अमूल्य रत्न चला गया दुनिया से


– मैं खुशकिस्मत हूं कि मैंने भी इंदौर की उस धरती पर ही जन्म लिया है जहां से देश ही नहीं पूरी दुनिया की स्वर साम्राज्ञी ‘लता मंगेशकर का जन्म हुआ था। जबसे लताजी की तबीयत बिगड़ी तब से दिल बहुत बेचैन रहने लगा था। आज सुबह जब लता जी के दुनिया छोड़कर जाने का अशुभ समाचार मिला तो आंखों से आंसू हमें नहीं थम रहे हैं। लता जी के रूप में दुनिया का अमूल्य रत्न चला गया है। यह कहना है क्षेत्र की प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत की गायिका कविता पुणतांबेकर का। इंदौर में जन्मी पुणतांबेकर विवाह उपरांत शाजापुर आकर बस गई। पत्रिका से चर्चा में 71 वर्षीय शास्त्रीय संगीत गायिका पुणतांबेकर ने कहा कि उन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा लताजी को आदर्श मानकर ही ग्रहण की थी। शास्त्रीय संगीत की जो पकड़ लताजी के पास थी वह पूरी दुनिया में किसी और के पास ना कभी थी ना आने वाले लाखों वर्षों में कभी हो पाएगी। उल्लेखनीय है कि शास्त्री संगीत गायिका कविता पुणतांबेकर पिछले करीब 50 वर्षो से शास्त्रीय संगीत से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने अपनी गायकी के दम पर अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए। लता जी को अपना आदर्श मानने वाली पुणतांबेकर हिंदी और मराठी दोनों में ही गायन करती हैं।
मालवा रंगमंच समिति अध्यक्ष केशव रॉय बोले


लताजी की एक झलक पाने लोग घंटों बंगले के बाहर टकटकी लगाए रखते थे
– मेरे 20 साल के संबंधों को आज अंतिम विराम लग गया। जहां लोग स्वरांजलि लता मंगेशकर की झलक पाने के लिए घंटों उनके बंगले के बाहर टकटकी लगाए रहते थे, मुझे भगवान महाकाल का आशीर्वाद मिला कि 20 वर्षों में मेरी लता दीदी से पांच बार प्रत्यक्ष रूप से मुलाकात हुई। यह बात मालवा रंग मंच समिति के अध्यक्ष केशव रॉय ने बताई। केशव मूल रूप से उज्जैन निवासी हैं, जो लंबे समय से परिवार सहित मुम्बई में रहते हैं। बकौल रॉय, मालवा रंग मंच समिति 2002 में अपने कार्यक्रम में लता मंगेशकर का सम्मान करना चाहती थी। इसके लिए लता मंगेशकर से मिले और उन्होंने हां भी कह दिया, लेकिन यह भी कहा कि इस बारे में वे किसी को बताए नहीं। रॉय के अनुसार उज्जैन पहुंचकर यह बात उनके मन में नहीं रही और दो-चार लोगों से इस बारे में बात हुई तो फैलती गई। इससे लताजी ने आने से इनकार कर ऊषा मंगेशकर को भेजा। जैसा कि रॉय ने बताया दोनों बहनों में काफी प्रेम था और लताजी अपनी बहन को हमेशा प्रोत्साहित करती रही। इसलिए उन्होंने 2002 में मालवा समिति सम्मान समारोह में ऊषा को भेजा था।
फिल्म इतिहासकार महेश शर्मा अनुराग ने कहा


वो क्षण कैसे भूल सकता हूं जब मैं स्वर कोकिला लताजी से इंटरव्यू ले सका
– स्वर साम्राज्ञी लताजी के निधन से भारत ही नहीं पूरा विश्व स्तब्ध है। यदि उन्हें श्रद्धांजलि देने को कहा जाए तो 7 मार्च 2007 का वो मेरे जीवन का ऐतिहासिक क्षण, समय दोपहर 1.15 जब मेरे परम मित्र केशव रॉय जी ने दस पत्रकारों में मेरा चयन लताजी से इंटरव्यू किया। इस बातचीत का केंद्र उनके भाई हृदय नाथ मंगेशकर जी थे, बातों बातों में जब मैंने उन्हें बताया कि आपने 1970 में प्रदर्शित हरिश्चंद्र तारामति में हृदय नाथजी के संगीत में गाया था, मंदिर में आया है दुखिया का कोई लाल, तेरी भी मां होती तो तेरा ऐसा होता हाल…. लताजी सुनते ही आश्चर्य में पड़ गई थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि लताजी उज्जैन आ चुकी हैं। उनकी मां माई मंगेशकर और बहन ऊषा मंगेशकर को मैंने पटनी बाजार में खरीदारी करते देखा। लताजी का जन्म इंदौर में हुआ और इन शब्दों के साथ जो मेरे गुरु कल्याणजी आनंदजी ने लता अलंकार प्राप्त करते इंदौर में कहे थे कि, लताजी का जन्म इंदौर में हुआ यानी फिल्म संगीत का जन्म इंदौर में हुआ।
लताजी के हाथों एमए संगीत की डिग्री ली


एक किस्सा यह भी…लताजी की मां व बहन को गाना सुनाते वो बड़ी खुश होती थी


भजन गायन के क्षेत्र में देश-विदेश में शर्मा बंधु के नाम से विख्यात राजीव शर्मा व इनके छोटेभाई स्व. संजीव शर्मा लता मंगेशकर पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। बकौल राजीव लता मंगेशकर पुरस्कार प्राप्त करने से छह साल पहले ही दीक्षांत समारोह में लताजी से मिल चुके थे। राजीव को पुरस्कार मिलने के छह साल बाद ही भाई स्व. संजीव शर्मा को भी इसी पुरस्कार से नवाजा गया था। राजीव शर्मा ने बताया कि बात सन 1980 की है। खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) में इंदिरा कलां संगीत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुझे एमए संगीत की डिग्री मिलना थी। लताजी के हाथों डिग्री प्राप्त करने से पहले मैंने उनके पैर छुएं, उन्होंने भी अपनी मधुर आवाज में कहा था- आशीर्वाद बेटा। वे साक्षात मां सरस्वती की प्रतिमूर्ति थी। गायन में श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर मशहूर संगीतकार कल्याणजी आनंदजी ने मुझे लता मंगेशकर पुरस्कार से नवाजा था।
एक किस्सा यह भी…


शर्मा ने बताया कि वर्ष 1978-79 में जब हम उज्जैन में हरसिद्धी मंदिर के पीछे रहते थे। हरसिद्धी की पाल पर ही महाराष्ट्रीयन परिवार रहता था। यहां लताजी की मां माई मंगेशकर व बहन उषा मंगेशकर आती थी। चूंकि वे भी गीतकार थी। हम उनके सामने गीत की प्रस्तुति देते थे, तो वे बेहद खुश होती थी।
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