मध्यप्रदेश में एमपी बोर्ड की परीक्षा चाहे 10वीं की हो या 12वीं की, पेपर की सुरक्षा का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। पिछले सालों में तो इसके आउट होने का खराब इतिहास रहा है। तीन साल में सोशल मीडिया पर समय से पहले लगातार कई पेपर बाहर आए हैं। जिनकी पहुंच है, वे परीक्षा से पहले इन्हें पाते भी रहे हैं और इस्तेमाल कर मेहनत को मुंह चिढ़ाने का काम भी करते रहे हैं। परीक्षा के पेपरों की बात इसलिए मौजूं है कि अभी परीक्षा का दौर ही है। फरवरी-मार्च में बोर्ड की परीक्षाएं होनी हैं। कर्ताधर्ताओं के लिए इस बारे में चिंता करना इसलिए जरूरी है कि प्री-बोर्ड परीक्षाओं के पेपर सामने आने की बात हो चुकी है। रतलाम में प्री बोर्ड की कक्षा 10वीं के पेपर सोशल मीडिया पर आ गए। जो पेपर आए, वे ही परीक्षा में आए। अभी तो मध्यप्रदेश में बोर्ड की मुख्य परीक्षाएं होना बाकी है। इसके पूर्व प्री बोर्ड में ही यह हालत है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में क्या होगा। पेपर, परीक्षा कक्ष से पहले कमजोर बच्चों के हाथ में पहुंचाए जा रहे है। कहा जा रहा है इसमें वे चेहरे शामिल है जो कोचिंग संस्थान चलाते हैं। प्री-बोर्ड परीक्षा के पेपर बाहर आना शिक्षा विभाग के लिए बड़ी चुनौती और कड़ा सबक है। उसका दायित्व भी है कि वह व्यवस्था का शिकंजा कसे और इसे इस कदर दुरुस्त बनाए कि किसी का इससे विश्वास न टूटे। इसके लिए उसे पेपर को ऑनलाइन डाउनलोड करने की प्रक्रिया की खामियों को पहचानना होगा और इन्हें दूर करने का जतन करना होगा। देखना होगा कि कहीं शहर से लेकर अंचल तक दो दिन पूर्व पेपर को डाउनलोड करने की अनिवार्यता तो व्यवस्था को धत्ता नहीं बता रही। शिक्षा माफिया इसी में खेल करने की गुंजाइश तो नहीं निकाल रहा। पेपर को परीक्षा से पहले बाजार में लाकर जो सफेदपोश चेहरे पढऩे वाले बच्चों के हित पर कुठाराघात कर रहे हैं, उनको बेनकाब कर सींखचों के पीछे पहुंचाने की जरूरत है। इसके लिए राजस्थान से प्रेरणा ली जा सकती है। व्यवस्था वहां भी चौकस नहीं है, वहां प्रतियोगी परीक्षा तक के पेपर आउट हुए हैं और इस कारण परीक्षाएं भी निरस्त हुई हैं, लेकिन सरकार ने इस खेल का खुलासा किया और इसमें लिप्त लोगों को जेल भिजवाने की व्यवस्था की। कुछ इसी तरह के कदम हमें भी उठाने होंगे। पेपर आउट होना सिर्फ सुरक्षा पर सवाल नहीं है, बल्कि पूरी पीढ़ी को कमजोर करने का षडयंत्र है।
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