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रतलाम

गया में ही क्यों होता है पिंडदान, यहां पढे़ं पूरी जानकारी

Importance of Gaya Pind Daan 2019 : जब मनुष्य का जीवन मिलता है तो कई प्रकार के ऋण होते है। इनमे मनुष्य पर देव ऋण, गुरु ऋण और पितृ ऋण होते हैं। माता-पिता की सेवा करके मरणोपरांत पितृपक्ष में पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध करने पर पितृऋण से मुक्ति मिलती है।

रतलामSep 11, 2019 / 12:28 pm

Ashish Pathak

Importance of Gaya Pind Daan 2019

Importance of Gaya Pind Daan 2019

रतलाम। Importance of Gaya Pind Daan 2019 : हिंदू धर्म या पंचाग के अनुसार अश्विनी महीने के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों तक का समय पितृपक्ष का होता है। पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। जब मनुष्य का जीवन मिलता है तो कई प्रकार के ऋण होते है। इनमे मनुष्य पर देव ऋण, गुरु ऋण और पितृ ऋण होते हैं। माता-पिता की सेवा करके मरणोपरांत पितृपक्ष में पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध करने पर पितृऋण से मुक्ति मिलती है। ये बात रतलाम के प्रसिद्ध ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कही। वे भक्तों को श्राद्ध व पिंडदान के बारे में बता रहे थे।
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ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कहा कि ऐसे तो देश के पुष्कर, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, चित्रकूट सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है। कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता व माता सीताजी ने भी अयोध्या के राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।
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भगवान विष्णु की नगरी मोक्ष की भूमि है गया

ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि भारतीय धर्मग्रंथ में बिाहर के गया को विष्णु की नगरी माना जाता है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। गरुड़ पुराण के अनुसार गया जाने के लिए घर से निकले एक-एक कदम पितरों को स्वर्ग की ओर ले जाने के लिए सीढ़ी बनाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार गया में पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं।
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पहले जाने यहां पर पढे़ं गयासुर की कहानी

ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कहा कि मान्यता है कि बिहार के गया भस्मासुर के वंशज दैत्य गयासुर की देह पर फैला है। पुराण में उल्लेख है कि गयासुर ने ब्रह्माजी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर वरदान मांगा कि उसकी देह देवताओं की भांति पवित्र हो जाए और उसके दर्शन से लोगों को पापों से मुक्ति मिल जाए। वरदान मिलने के बाद स्वर्ग में जन्संख्या बढऩे लगी और लोग अधिक पाप करने लगे। इन पापों से मुक्ति के लिए वे गयासुर के दर्शन कर लेते थे। इस समस्या से बचने के लिए देवताओं ने गयासुर से कहा कि उन्हें यज्ञ के लिए पवित्र स्थान दें। गयासुर ने देवताओं को यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया।
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पांच कोस तक गया

ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कहा कि कहा जाता है कि दैत्य गयासुर जब लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस का स्थान आगे चलकर गया के नाम से जाना गया। गया के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा कम नहीं हुई, इसलिए उसने देवताओं से फिर वरदान की मांग कि यह स्थान लोगों के लिए पाप मुक्ति वाला बना रहे। जो भी श्रद्धालु यहां श्रद्धा से पिंडदान करते हैं, उनके पितरों को मोक्ष मिलता है।
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बताया गया जी का महत्व

ज्योतिषी अभिषेक जोशी बताते हैं कि आखिर गया में ही पिंडदान करने का खासा महत्व क्यों है? वे कहते हैं कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता। गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से इन दिनों 48 ही बची हैं। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष गया में देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं। हर इंसान की यह इच्छा होती है कि मरने के बाद गया धाम में उसका पिंडदान किया जाए ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके।
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विराजमान हैं भगवान विष्णु

पितृपक्ष के पहले दिन की शुरुआत पावन फल्गु नदी के जल में पितरों को तपर्ण करने के साथ होती है। एक पखवारे तक चलने वाले पितृपक्ष मेले की शुरुआत यहीं से मानी जाती है। फल्गु तीर्थ और विष्णुपद में तादात्म्य संबंध है। भगवान विष्णु भी गया तीर्थ में जल रूप में विराजमान हैं। इसलिए गरुड़ पुराण में वर्णित है कि 21 पीढि़यों में किसी भी एक व्यक्ति का पैर फल्गु में पड़ जाए तो उसके समस्त कुल का उद्धार हो जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा गया कि फल्गु सर्वनाश और गदाधर देव का दर्शन एवं गयासुर की परिक्रमा ब्रह्म हत्या जैसे पाप से मुक्ति दिलाती है। गयासुर की परिक्रमा का अभिप्राय समस्त पिंडवेदियों से है, क्योंकि एक कोशिश का मतलब तीन किलोमीटर के क्षेत्र से है, जिसमें मुख्य वेदियां सम्मलित हैं।
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भगवान से है सीधा जुड़ाव

ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने बताया कि भगवान राम, अनुज लक्ष्मण के साथ माता सीता भगवान दशरथ का पिंडदान करने गयाजी आए थे। राम-लक्ष्मण पिंडदान करने के लिए सामग्री एकत्रित करने चले गये और सीताजी गया धाम में फल्गु नदी के किनारे दोनों के वापस लौटने का इंतजार कर रही थीं। पिंडदान का समय निकला जा रहा था तभी राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। समय को हाथ से निकलता देख सीता जी ने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।
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गरुण पुराण में है इसका उल्लेख

जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण वापस लौटे तो सीता ने पिंडदान की बात बताई जिसके बाद श्रीराम ने सीता से इसका प्रमाण मांगा। सीता जी ने जब फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल से गवाही देने के लिए कहा तो तीनों अपनी बात से मुकर गए, सिर्फ वटवृक्ष ने ही सीता के पक्ष में गवाही दी। इसके बाद सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की। सीताजी की प्रार्थना सुनकर स्वयं दशरथ जी की आत्मा ने यह घोषणा की कि सीता ने ही उन्हें पिंडदान दिया है। स्वयं सीता जी ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान गया में किया था और गरुड़ पुराण में भी इस धाम का उल्लेख मिलता है इसलिए हर इंसान मृत्यु के बाद मुक्ति और शांति पाने के लिए गया में ही अपना पिंडदान कराने की इच्छा रखता है।
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