संजीवनी ले जाते वक्त यहां रुके थे हनुमान
गांव का नाम है बजरंगगढ़ जो रतलाम जिले का एक आदिवासी गांव का है। माही नदी के किनारे बसा बजरंगगढ़ गांव रतलाम जिले से करीब 50 किमी. दूर है। यहां माही नदी के तट पर एक हनुमानजी का अति प्राचीन मंदिर है जिसे लेकर मान्यता है कि जब भगवान राम और रावण के बीच चल रहे युद्ध में मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण जी घायल हो गए थे तब उनके प्राण बचाने के लिए भगवान हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए थे और संजीवनी बूटी ले जाते वक्त हनुमान जी माही नदी के किनारे इसी स्थान पर कुछ पलों के लिए ठहरे थे। इसी कारण गांव का नाम बजरंगगढ़ पड़ा।
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हनुमान जी की कृपा से कुरीतियों से दूर बजरंगगढ़
अब इसे हनुमान जी की कृपा मान लीजिए या फिर बजरंगगढ़ में रहने वाले लोगों का भगवान हनुमान पर विश्वास की आज भी बजरंगगढ़ गांव कई कुरीतियों से दूर है। गांव का कोई भी व्यक्ति नशा नहीं करता है और गांव पूरी तरह से नशामुक्त है। इतना ही नहीं आदिवासियों में शादी के दौरान लड़के पक्ष से दहेज लेने की जो कुरीति है वो भी इस गांव में नहीं है। आदिवासी गांव होने के बावजूद न तो यहां पर दहेज लिया जाता है और न ही दिया जाता है। ग्रामीणों का ये भी कहना है कि भगवान हनुमान की कृपा से गांव में कभी कोई बड़ी विपदा नहीं आती है। कुछ ग्रामीणों का कहना है कि माही नदी के किनारे बसा हनुमान जी का मंदिर कई सौ साल पुराना है और 250-300 साल पहले जब राजा रतन सिंह यहां पर शिकार के लिए आते थे तो मंदिर में हनुमान जी के दर्शन कर कुछ वक्त जरुर यहां पर गुजारते थे। इस मंदिर में आज भी ग्रामीणों की गहरी आस्था और विश्वास है।
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