CAA NRC को लेकर विधायक ने बोली बड़ी बात, यहां देखें खबर का VIDEO सर्दी से बचने लेते है एक चाय वैसे इन दोनों की उम्र पढऩे व खेलने की है, लेकिन कम उम्र में यह दोनों समझदार हो गए है। जो लंबाई में बड़ा रमेश है वो कक्षा आठ में तो छोटा वाला चुलबुल कक्षा 6 में है। दोनों शहर के बजंरंग नगर में रहते है। हाट की चौकी स्थित सरकारी स्कूल में साथ जाते है। अन्य बच्चों को सर्दी मिटाने के लिए स्वेटर पहनते देखा व महंगी रबड़, पैंसील लेते देखा तो मन हो गया कि खुद का खर्च निकाले, इसलिए शनिवार व रविवार को फुग्गे की बिक्री करने का कार्य करते है। जब कंपकपाने वाली सर्दी होती है तो स्वेटर के अभाव में एक चाय खरीदते है व आधी-आधी दोनों पी लेते है। पिजा बर्गर के दौर में यह दोनों बच्चे स्वयं की पढ़ाई के लिए पाई- पाई एकत्रित करते है।
मोदी सरकार की इंदौर, उज्जैन व रतलाम को बड़ी सौगात बीच में खर्च हो जाते है बड़ा रमेश है। रमेश बताता है कि रुपए तो इकठ्ठे होते है, लेकिन कभी – कभी खर्च भी हो जाते है। कहां खर्च होते है जब सवाल किया तो दोस्त चुलबुल की तरफ उंगली उठा दी। फिर चुलबुल ने बताया कि उसकी बहन है भूरी। उसको कभी कभी भेलपूरी खाने की इच्छा होती है तो खिला देते है। बस इस चक्कर में अब तक स्वेटर तो नहीं खरीद पाए, लेकिन बड़ी दुकान से संपन्न लोगों की तरह रबड़, पैंसील ले ली है। चुलबुल का मन कलेक्टर बनने का है, तो रमेश को सेना में जाना है। चुलबुल के अनुसार कलेक्टर बना तो किसी बच्चे को बगैर स्वेटर नहीं रहने दूंगा।
रेलवे का नवाचार VIDEO : हैरिटेज ट्रेन में लगेंगे विस्टाडोम कोच यह कहते है चुलबुल के पिता
चुलबुल के पिता विरङ्क्षसह के अनुसार दोनों को मना किया कि सर्दी अधिक है। हम लोग मेहतन करते ही है, लेकिन दोनों सुनने को तैयार नहीं है। बाकी दिन तो पढ़ाई करते है, लेकिन शनिवार व रविवार को शाम को ५ बजे से लेकर रात ९ बजे तक शहर के अलग-अलग मोहल्लों में जाकर फुग्गे की बिक्री करते है। बच्चों को स्वेटर क्यों नहीं दिलाया तो कहते है मजदूरी करते है, रोटी के लिए कमा ले यही बहुत है।
चुलबुल के पिता विरङ्क्षसह के अनुसार दोनों को मना किया कि सर्दी अधिक है। हम लोग मेहतन करते ही है, लेकिन दोनों सुनने को तैयार नहीं है। बाकी दिन तो पढ़ाई करते है, लेकिन शनिवार व रविवार को शाम को ५ बजे से लेकर रात ९ बजे तक शहर के अलग-अलग मोहल्लों में जाकर फुग्गे की बिक्री करते है। बच्चों को स्वेटर क्यों नहीं दिलाया तो कहते है मजदूरी करते है, रोटी के लिए कमा ले यही बहुत है।