scriptMaharana Kumbha: मेवाड़ का एक ऐसा शासक जो कभी युद्ध में नहीं हारा, 35 साल में ही बनवा लिए थे 32 दुर्ग | Maharana Kumbha The Ruler of Mewar Who Never Lost a Battle Built 32 Forts in 35 Years | Patrika News
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Maharana Kumbha: मेवाड़ का एक ऐसा शासक जो कभी युद्ध में नहीं हारा, 35 साल में ही बनवा लिए थे 32 दुर्ग

Rajasthan News: इस महानतम शासक एवं योद्धा, जिसे हम मेवाड़ निर्माता भी कहते हैं, उनकी जन्मस्थली मदारिया आज भी शासन की दृष्टि से उपेक्षित है।

राजसमंदJan 14, 2025 / 02:40 pm

Alfiya Khan

Maharana Kumbha

file photo

Kumbha of Mewar: देवगढ़। शौर्य, भक्ति एवं बलिदान की धरा मेवाड़ का कण-कण अपने में गौरवशाली इतिहास समेटे हुए हैं। इसी गौरवशाली इतिहास गगन में महाराणा कुम्भा एक दिव्य नक्षत्र की भांति आभा बिखेर रहे हैं। महाराणा कुम्भा का शासन काल मेवाड़ इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है एवं जाना जायेगा।
इस महानतम शासक एवं योद्धा, जिसे हम मेवाड़ निर्माता भी कहते हैं, उनकी जन्मस्थली मदारिया आज भी शासन की दृष्टि से उपेक्षित है। यदि हम महाराणा कुम्भा जन्मभूमि पर एक भव्य स्मारक खड़ा करते हैं तो यह एक कृतज्ञ राष्ट्र की उस महान शासक व अप्रीतम योद्धा को विनम्र श्रद्धान्जलि होगी।

जन्मकाल एवं जनश्रुति

प्रात: स्मरणीय महाराणा कुम्भा का जन्म मकर संक्रान्ति 1417 ई. में मेवाड प्रदेश के उत्तरी छोर स्थित मदारिया में हुआ। ये महाराणा मोकल के ज्येष्ठ पुत्र थे एवं परमार कुल की सौभाग्य देवी इनकी माता थी। उन दिनों मेरो के उत्पात से निजात पाने के लिए महाराणा मोकल ने मदारिया को अपना अस्थायी केन्द्र बनाया था।
इसी सैनिक अभियान के दौरान महाराणा कुम्भा का जन्म हुआ। महाराणा कुम्भा के जन्म के बारे में एक रोचक कथा एवं जनश्रुति सम्पूर्ण मेवाड में व्याप्त है। महाराणा मोकल के तीन रानियां थी, पहली जैसलमेर की भटियाणी रानी, दूसरी हाडी रानी एवं तीसरी कुम्भा की जननी रणकोट के स्वामी परमार वंशीय जैतमल सांखला की पुत्री सौभाग्य देवी।
कहते हैं जब रानी सौभाग्य देवी गर्भवती हुई तो मंझली हाड़ी रानी ने सौतिया डाह से प्रेरित हो, तांत्रिक क्रियाओं के लिए कलश (कुम्भ) का सहारा लिया। नौ महिने बीत जाने के बाद भी जब बालक का जन्म नहीं हुआ तो राजमहल में बडी हलचल मची तो बडी भटियाणी रानी, जो सौभाग्य देवी की हितैषी थी, को जब तांत्रिक क्रिया का पता लगा तो उन्होंने बाबा रामदेव से सम्पर्क किया।
इस पर बाबा रामदेव ने बताया कि मेरा समाधि का समय नजदीक आ रहा है, इसलिये मैं मदारिया न आ पाऊंगा, मैं अपनी आध्यात्मिक शक्तियां मेरे काका धन स्वरूप जी को देकर मदारिया भेज रहा हूं, वे आकर आपकी समस्या का निराकरण करेंगे। कहते हैं बाबा रामदेव से आध्यात्मिक शक्तिया प्राप्त कर धनस्वरूप जी मदारिया आये एवं आते ही उन्होंने योजनाबद्ध रूप से उस कलश (कुम्भ) को, जिसमें तान्त्रिक क्रिया कर रखी थी, हाडी रानी के हाथों से ही फुड़वा दिया।
उस कलश (कुम्भ) के फटते ही बालक का जन्म हो गया। इसलिए उस बालक का नाम कुम्भा रखा गया। यही बालक आगे चल कर महान पराक्रमी होकर मेवाड़ के स्वर्णिम युग के निर्माता बने। महाराणा कुम्भा विशालकाय कद के थे। ऐसा माना जाता है कि उनकी कद काठी 7.5 से 8 फीट की थी। वे कुम्भलगढ़ स्थित शिव मंदिर जिसमें 8 फुट ऊँचा शिवलिंग है, उसमें वे बैठकर पूजा अर्चना व जलाभिषेक किया करते थे।

राज्याभिषेक एवं शासनकाल

महाराणा मोकल को बागोर के बाग में शिकार के समय महाराणा खेता की उप पत्नी (पासवान) से उत्पन्न पुत्रों चाचा, मेरा ने षड्यन्त्र पूर्वक मार देने के पश्चात् ज्येष्ठ पुत्र कुम्भा को सन् 1433 ई. को 17 वर्ष की अवस्था में गद्दीनशीन किया। महाराणा मोकल की मृत्यु से पूर्व ही मोकल के मामा रणमल मण्डोर चले गए थे। पुन: मेवाड़ आकर उन्होंने चाचा मेरा को मारकर मोकल की हत्या का बदला लिया। लेकिन, धीरे-धीरे मेवाड़ में उनका प्रभाव बढ़ता चला गया।
ऐसा देख विवेकवान कुम्भा ने अपने ताऊ रावत चुण्डा को माण्डू (मालवा) से वापस बुला लिया और चुण्डा के हाथों राव रणमल मारा गया। उसके पुत्रों को रावत चुण्डा ने चित्तौड़गढ़ से भगा दिया। आगे चल कर कुम्भा एक महानतम योद्धा सिद्ध हुए। इतिहासकार डॉ. गौरीशंकर हिराचन्द ओझा के अनुसार महाराणा सांगा के साम्राज्य की नींव डालने वाले कोई और नहीं महाराणा कुम्भा थे।

विजय अभियान

राजगद्दी पर बैठते ही उन्होंने अपने विजय अभियान प्रारम्भ किये इसमें मालवा, गुजरात, मंडोर, अजमेर, नागौर विजय मुख्य हैं। इस प्रकार इस महानतम यौद्धा ने राजपूताने का अधिकांश भाग माण्डू (मालवा), गुजरात आदि राज्यों के भागों पर विजय प्राप्त कर मेवाड को एक महान साम्राज्य के रूप में परिवर्तित कर दिया एवं इतिहासकार डॉ. के. एस. गुप्ता के अनुसार महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ राज्य की वैज्ञानिक सीमाएं निर्धारित की। महाराणा कुम्भा ने अपने 35 वर्षीय शासनकाल में लगभग 56 युद्ध लड़े एवं एक भी नहीं हारा।

राजस्थानी शिल्प के जनक

महाराणा कुम्भा शिल्प स्थापत्य के महान ज्ञाता थे। उन्होंने मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण कराया- इसमें कुम्भलगढ़, आबू स्थित अचलगढ़ एवं सिरोही स्थित वसन्तगढ़ दुर्ग विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण भी कुम्भा के शासन काल में हुआ। एकलिंग मंदिर का पुर्ननिर्माण भी कुम्भा काल में ही हुआ।

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