छग संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यह एक पूर्वामुखी मंदिर है। जिसका निर्माण पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर में मंडप और गर्भगृह दो अंग है। कवर्धा के फणि नागवंशीय राजाओं के राज्यकाल में करीब 10वीं-12वीं ईसवी में इस मंदिर का निर्माण कराया गया, ऐसा पुरातत्ववेताओं का कहना है। रोचक बात ये है कि इस मंदिर के दोनों ओर पर सूक्ष्म कुंड निर्मित है। पुरातत्ववेता की माने तो यह कुंड पानी एकत्र करने के लिए बनाए गए थे, इसी पानी से स्वत: ही गर्भगृह के जलधारी में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक होता था।
शिवलिंग में चढ़े जल के लिए प्रवाहित की दिशा उत्तर की ओर है गर्भ गृह की भित्तियां अलंकार विहीन हैं। केवल पश्चिम दिशा की दीवार में एक आले में गणेश जी की भव्य मूर्ति विराजित हैं। घटियारी मंदिर के पास दो और टीले है, जिनकी उत्खनन इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व और भी अधिक सुढृण होगा। सागौन वृक्षों घिरी ये टीले अपने गर्भ में महत्वपूर्ण जानकारियां समेटे हुए है।
मंडप में भगवान गणेश, भैरव, महिषासुर मर्दनी तथा अन्य खंडित प्रतिमाएं रखी हुई है। गर्भगृह के अलकृंत द्वार चौखट पर घट पल्लव और कीर्तिमुख का अंकन है। दाएं और बांए द्वार चौखट पर नीचे के भाग में त्रिभंग मुद्रा में चर्तुर्भुजी शैव प्रतिहार प्रदर्शित है। इस मंदिर परिसर में पौराणिक काल के दौरान अन्य शिव मंदिरों का भी निर्माण होता रहा है, जिनके ध्वस्त अवशेष स्थल पर बिखरे पड़े हुए है। स्थानीय लोगों की माने तो इस मंदिर के संबंध में ज्यादा लोग नहीं जानते है, मंदिर पहुंचने के लिए पक्की सड़क का भी निर्माण किया गया है।