scriptये है 10वीं-12 वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर, लोग जिसे समझते थे मामूली टीला उसके नीचे मिला ऐतिहासिक नगर के अवशेष | Gandai city the 10th-12th century ancient Shiva temple found | Patrika News
राजनंदगांव

ये है 10वीं-12 वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर, लोग जिसे समझते थे मामूली टीला उसके नीचे मिला ऐतिहासिक नगर के अवशेष

गंडई से लगभग 7 किलोमीटर दूर बिरखा घटियारी में। इस जगह भोरमदेव समकालीन प्राचीन शिव मंदिर। (Ancient shiv temple in Rajnandgaon)

राजनंदगांवAug 04, 2020 / 06:30 pm

Dakshi Sahu

ये है 10वीं-12 वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर, लोग जिसे समझते थे मामूली टीला उसके नीचे मिला ऐतिहासिक नगर के अवशेष

ये है 10वीं-12 वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर, लोग जिसे समझते थे मामूली टीला उसके नीचे मिला ऐतिहासिक नगर के अवशेष

रोहित देवांगन@ राजनांदगांव/गंडई पंडरिया. हम आपको गंडई क्षेत्र के ऐेसे धार्मिक दर्शनीय स्थल से रूबरू करा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। इसके लिए हम आपको ले चलते है गंडई से लगभग 7 किलोमीटर दूर बिरखा घटियारी में। इस जगह भोरमदेव समकालीन प्राचीन शिव मंदिर। जिज्ञासा वाली बात ये है कि 41 साल पहले तक कोई जानता भी नहीं था इस जगह पर प्राचीन शिव मंदिर है। जमीन में दफ्न यह मंदिर वर्ष 1979 में टीले के उत्खनन से प्रकाश में आया है। हालांकि सैकड़ों वर्ष तक जमीन में दफ्न रहने की वजह से मंदिर की ज्यादातर मूर्तियों का हिस्सा टूट चुका है।
पूर्वामुखी है शिवालय
छग संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यह एक पूर्वामुखी मंदिर है। जिसका निर्माण पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर में मंडप और गर्भगृह दो अंग है। कवर्धा के फणि नागवंशीय राजाओं के राज्यकाल में करीब 10वीं-12वीं ईसवी में इस मंदिर का निर्माण कराया गया, ऐसा पुरातत्ववेताओं का कहना है। रोचक बात ये है कि इस मंदिर के दोनों ओर पर सूक्ष्म कुंड निर्मित है। पुरातत्ववेता की माने तो यह कुंड पानी एकत्र करने के लिए बनाए गए थे, इसी पानी से स्वत: ही गर्भगृह के जलधारी में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक होता था।
ये है 10वीं-12 वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर, लोग जिसे समझते थे मामूली टीला उसके नीचे मिला ऐतिहासिक नगर के अवशेष
घटियारी का प्राचीन शिव मंदिर प्रस्तर निर्मित है। इन मदिरों व मूर्तियों के अतिरिक्त घटियारी क्षेत्र के आस-पास और भी आलंकारिक मूर्तियां व वास्तुखंड बिखरे पड़े हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अतीत में यहां समृद्ध और गौरवशाली नगर रहा होगा, जो प्राकृतिक के थपेड़ों के कारण नष्ट हो चुका है। गर्भगृह में कृष्ण प्रसार से निर्मित विशाल जलहरी है। जिसमें शिवलिंग स्थापित है, किन्तु यह शिवलिंग वास्तविक न होकर कृत्रिम है। क्योंकि इस स्थापित शिवलिंग जलहरी के अनुपात में छोटा है।
सागौन वृक्षों से घिरा है टीला
शिवलिंग में चढ़े जल के लिए प्रवाहित की दिशा उत्तर की ओर है गर्भ गृह की भित्तियां अलंकार विहीन हैं। केवल पश्चिम दिशा की दीवार में एक आले में गणेश जी की भव्य मूर्ति विराजित हैं। घटियारी मंदिर के पास दो और टीले है, जिनकी उत्खनन इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व और भी अधिक सुढृण होगा। सागौन वृक्षों घिरी ये टीले अपने गर्भ में महत्वपूर्ण जानकारियां समेटे हुए है।
बिखरी पड़ी है विरासत
मंडप में भगवान गणेश, भैरव, महिषासुर मर्दनी तथा अन्य खंडित प्रतिमाएं रखी हुई है। गर्भगृह के अलकृंत द्वार चौखट पर घट पल्लव और कीर्तिमुख का अंकन है। दाएं और बांए द्वार चौखट पर नीचे के भाग में त्रिभंग मुद्रा में चर्तुर्भुजी शैव प्रतिहार प्रदर्शित है। इस मंदिर परिसर में पौराणिक काल के दौरान अन्य शिव मंदिरों का भी निर्माण होता रहा है, जिनके ध्वस्त अवशेष स्थल पर बिखरे पड़े हुए है। स्थानीय लोगों की माने तो इस मंदिर के संबंध में ज्यादा लोग नहीं जानते है, मंदिर पहुंचने के लिए पक्की सड़क का भी निर्माण किया गया है।

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