स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से यह राशि अतिरिक्त चाइल्ड केयर के लिए दी गई थी। जिसके माध्यम से ब्यावरा सिविल अस्पताल में पीआईसीयू बनाने नई बनीं हुई बिल्डिंग में तोड-फोड़ की गई, कमरे ध्वस्त कर वहां नये सिरे से यह यूनिट तैयार की गई। तोड़ने और नष्ट करने में भी काफी खर्च स्वास्थ्य विभाग का हुआ, तब जाकर यह यूनिट तैयार हो पाई लेकिन वर्तमान में यह सिर्फ शो-पीस बनकर रह गई है। इसका एक दिन भी उपयोग नहीं हो पाया है। कहने को यह चालू है और पूरी तरह से तैयार है लेकिन यह एक दिन भी चालू नहीं हो पाई। अस्पताल प्रबंधन की इस मामले में सफाई है कि हमारे पास स्टॉफ नहीं है। ट्रेंड नर्सिंग स्टॉफ नहीं है और शिशु रोग विशेषज्ञ भी एक ही है। वहां के लिए अतिरिक्त चार डॉक्टर्स और करीब आठ पैरामेडिकल स्टॉफ की जरूरत है। ऐसे में यह चालू नहीं हो पा रही है। इस बीच नवजात और अन्य बच्चों को इमरजेंसी केयर के लिए जिला अस्पताल भेजना मजबूरी है। शासन की मंशाअनुसार यह बनने के तुरंत बाद चालू हो जाना था लेकिन आज दिनांक तक चालू नहीं हो पाया, तब से यह धूल ही खा रहा है। जिससे नवजात और दूर-दराज से अपने बच्चों को लेकर उपचार के लिए आने वाले परिजन भी परेशान होते हैं.
फैक्ट-फाइल -9 बेड का है पीआईसीयू -8 नर्सिंग स्टॉफ -4 डॉक्टर्स -2 अन्य स्टॉफ (स्त्रोत : सिविल अस्पताल, ब्यावरा) मौजूदा स्टाॅफ ट्रेंड नहीं, इसीलिए इंतजार पीआईसीयू में बच्चों की अतिरिक्त केयर के लिए ट्रेंड स्टॉफ की जरूरत होती है। मौजूदा स्टॉफ इसमें ट्रेंड नहीं है, इसीलिए नये नर्सिंग स्टॉफ का इंतजार अस्पताल प्रबंधन को है। अस्पताल में यदि बच्चों की केयर पूरे तरीके से होने लगे तो इसकी छबि सुधर सकती है। सीजेरियन केसेज होने से काफी कुछ दिक्कतें निपट गई हैं, रेफरल केसेस से निजात मिल गई है। ऐसे में अब पीआईसीयू के चालू होने से बच्चों को भी राहत मिल सकती है लेकिन दो साल के लंबे इंतजार के बाद भी वह अधूरा ही है।
स्टॉफ आने पर चालू करेंगे यूनिट बनकर तैयार है, कोई काम भी शेष नहीें है लेकिन उसके लिए स्वीकृत स्टॉफ अभी तक नहीं आया है। चार डॉक्टर्स और 8 पैरामेडिकल स्टॉफ की जरूरत उसमें है। उनके आए बगैर हम उसे चालू नहीं कर सकते। शासन से मांग किए हैं, जल्द ही स्वीकृति मिलेगी।
–डॉ. सौरिन दत्ता, प्रभारी, सिविल अस्पताल, ब्यावरा