यही नहीं, गांव के घरों की दीवारों पर भी संस्कृत में ही श्लोक लिखे गए हैं। कुल मिलाकर यहां के लोगों ने संस्कृत भाषा को पूरी तरह अपनाया हुआ है। यहां रहने वाले किसी शख्स से अगर आप सुब सुबह मुलाकात करते हैं तो वो आपसे ‘गुड मॉर्निंग’ नहीं बल्कि ‘नमो-नम:’ कहेगा। हैरानी की बात तो ये है कि, इस गांव के आसपास का हर गांव हिंदी में अपनी लोकल टोन का मिश्रण करके बातचीत करते हैं, जिनसे रोजाना इस गांव के लोगों का मिलना जुलना होता रहता है, बावजूद इसके गांव के लोग बाहरी शख्स से ही अन्य भाषाओं में बातचीत करते हैं पर अपने गांव के लोगों से नहीं। फिर भले ही वो कई छोटा बच्चा ही क्यों न हो।
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समाज सेविका का अहम योगदान
बता दें कि, इस गांव में संस्कृत से लगाव साल 2002 से लोगों में हुआ है। ग्रामीणों की मानें तो इस भाषा का महत्व और उसे सिखाने में समाज सेविका विमला तिवारी का अहम योगदान रहा है। विमला की फिक्र और ग्रामीणों के शौख के दम पर धीरे-धीरे गांव के लोगों में दुनिया की प्राचीन भाषा के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है।
इस तरह दूसरे गांवों में भी की जा रही संस्कृत सिखाने की शुरुआत
करीब एक हजार की आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं, किसान और मजदूर भी एक-दूसरे से संस्कृत में ही बातचीत करते हैं। दो दशक पहले यहां संस्कृत भारती से जुड़े लोगों ने इसकी शुरुआत कराई थी। तभी से संस्कृत भाषा लोगों को इतनी भाई कि, लोगों ने ग्रामीणों ने उसे पूरी तरह अपना लिया। ग्रामीण कहते हैं कि, ये भाषा बहुत मीठी है। इसमें बोलचाल में अपनापन झलकता है। यही नहीं यहां से जो हमारी बहनों की शादी दूसरे गांवों में हुई है, वहां वो उन गांवों और इलाकों में जाकर अब वहां के लोगों को संस्कृत सिखाने का प्रयास कर रही हैं।
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घरों के नाम भी संस्कृत में
झिरि गांव के घरों के नाम भी संस्कृत में हैं। कई घरों के बाहर ‘संस्कृत गृहम’ लिखा है। खास बत ये है कि, इस गांव के नौजवान संस्कृत भाषा को लेकर खासी मेहनत कर रहे हैं। वह स्कूलों के अलावा गांव के बच्चों को मंदिर, गांव के चौपाल में इकट्ठा करके संस्कृत सिखाते हैं। इतना ही नहीं, गांव में शादी-विवाह के मौकों पर भी यहां की महिलाएं संस्कृत भाषा में ही गीत गायन करती हैं।
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