जिले में काफी बड़े स्तर पर धनिये की पैदावार इस बार हुई है। लेकिन उन्हीं किसानों ने बोवनी की है जो जोखिम उठा सकते हैं। धनिये की पैदावार काफी मेहनत से होती है और सर्दी, ठंड का असर इस पर सर्वाधिक पड़ता है। साथ ही दवाइयां भी काफी इसमें छिडक़ना पड़ती है, मेहनत आम उपज (गेहूं व अन्य) से दो गुना इसमें होती है। ऐसे में अब हाल ये है कि किसानों के यहां निकले रंगदार और सामान्य धनिये का भूसा भी मसाला व्यापारी ढूंढ़ते फिर रहे हैं। लेकिन उन्हें मिल नहीं रहा। जो किसान बचा हुआ भूसा लेकर पहुंचते हैं उनकी आम फसलों की तरह बोली लगाई जाती है।
जानें पीछे की कहानी… इसी भूसे से बन रहा आपका branded मसाला
विभिन्न प्रकार के ISI मार्क वाला ब्रांडेड मसाला जिसे हम शुद्ध मानकर अमूमन खरीद लेते हैं, उनके पीछे की सच्चाई यही है कि लोकल स्तर पर और बड़े स्तर पर भी मसाला उद्योग में यह काम लिया जाता है। जिस पर कभी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती। खास बात यह है कि रंगीन धनिये का भूसा भी हरा रहता है। इसमें पिसने के बाद ज्यादा अंतर महसूस नहीं किया जा सकता। पैकिंग वाला धनिया बड़े आयोजनों, धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक में बड़ी मात्रा में यह जाता है जहां न कोई क्वालिटी चैक होता है न ही अन्य दायरा इसे जांचने का होता है, इससे यह धंधा खूब फलफूल रहा है।
बड़ी बात यह है कि बड़े शहरों के साथ ही ब्यावरा मंडी में भी कुछ व्यापारी ऐसे हैं जो मसाले का व्यापार इसी भूसे के बलबूते करते हैं लेकिन रंगेहाथों नहीं पकड़े जाने के कारण हमेशा कार्रवाई से बचते रहे हैं। यदि विभाग उन तक पहुंचता भी है तो तर्क तमाम प्रकार के आ जाते हैं कि हमने तो मवेशी को खिलाने लिया या फिर अन्य उपयोग में लेने को लिया लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि इसी भूसे से मसाला बनाया जा रहा है जो कि धनिये पाउडर के तौर पर हमें विभिन्न मॉल्स, किराना व्यवसायी, आपके परचून विक्रेता के यहां मनमाने ब्रांडेड दाम में दिया जाता है।
बख्शे नहीं जाएंगे ऐसे लोग
यदि भूसे का उपयोग मसाला पैकिंग में किया जा रहा है तो यह बेहद गलत है, ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। जिले के मसाला उद्योगों का हम रेंडमली सर्वे कराएंगे। रंगे हाथ पकड़ाए जाने पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने वालों पर जरूर कार्रवाई करेंगे।
-शिवराज पावक, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, ब्यावरा